धृतराष्ट्र-सुत सब साथ उनके ये नृपति-समुदाय भी।
श्री भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, प्रधान अपने भट सभी॥26॥
विकराल डाढ़ों युत भयानक आपके मुख में, हरे।
अतिवेग से सब दौड़ते जाते धड़ाधड़ हैं भरे॥
ये दिख रहे कुछ दाँत में लटके हुए रण-शूर हैं॥
इस डाढ़ में पिस कर अभी जिनके हुए शिर चूर हैं॥27॥
जिस भाँति बहु सरिता-प्रवाह समुद्र प्रति जाते बहे।
ऐसे तुम्हारे ज्वाल-मुख में वेग से नर जा रहे॥28॥
जिस भाँति जलती ज्वाल में जाते पतंगे वेग से।
यों मृत्यु हित ये नर, मुखों में आपके जाते धसे॥29॥
सब ओर से इस ज्वालमय मुख में नरों को धर रहे।
देवेश! रसना चाटते भक्षण सभी का कर रहे॥
विष्णो! प्रभाएँ आपकी अति उग्र जग में छा रहीं॥
निज तेज से संसार सारा ही सुरेश, तपा रही॥30॥