सुनी हो मैं हरि आवन की अवाज -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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प्रतीक्षा
राग कलिंगड़ा






सुनी हो मैं हरि आवन की अवाज ।। टेक ।।
म्हैल चढ़े चढ़ि जोऊँ मेरी सजनी, कब आवै महाराज ।
दादर मोर पपइया बोलै, कोइल मधुरे साज ।
उमंग्योर इन्द्र चहूँ दिसि बरसै, दामणि छोड़ी लाज ।
धरती रूप नवानवा धरिया, इन्द्रि मिलण कै काज ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, बेग मिलो महाराज ।।141।।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आवाज = शब्द, ख़बर। म्हैल = महल। चढ़े चढ़ि = चढ़ चढ़कर। जाऊँ = देखती हूँ। महाराज = प्रियतम। साज = साद वा शब्द से। मधुरे = मीठे, सुहावने। उँमग्यो इन्द्र = इन्द्र का मेघ उमड़ आया। दामणि = दामिनी, बिजली। छोड़ी लाज = लज्जा छोड़ कर सामने चमक रही है। नवा नवा = नये नये, हरे। धरिया = धारण किया।

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