श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 253

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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पंचम अध्याय

एवं समाहितचित्तेन किं विज्ञेयम् इति उच्यते- इस प्रकार समाहित-चित्त हुए पुरुष द्वारा जानने योग्य क्या है? इस पर कहते हैं-

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥29॥

भोक्तारं यज्ञानां तपसां च कर्तृरूपेण देवता रूपेण च सर्वलोकमहेश्वरं सर्वेषा लोकानां महान्तम् ईश्वरं सर्वलोकमहेश्वरम्, सुहृदं सर्वभूतानां सर्वप्राणिनां प्रत्युपकारनिरपेक्षतया उपकारिणम्, सर्वभूतानां हृदयेशयं सर्वकर्मफलाध्यक्षं सर्वप्रत्ययसाक्षिणं मां नारायणं ज्ञात्वा शान्तिं सर्वसंसारोपरतिम् ऋच्छति प्राप्नोति।।29।।

(मनुष्य) मुझ नारायण को कर्तारूप से और देवरूप से समस्त यज्ञों और तपों का भोक्ता, सर्वलोक महेश्वर अर्थात् सब लोकों का महान् ईश्वर, समस्त प्राणियों का सुहृद्-प्रत्युपकार न चाहकर उनका उपकार करने वाला, सब भूतों के हृदय में स्थित, सब कर्मों के फलों का स्वामी और सब संकल्पों का साक्षी जानकर शान्ति को अर्थात् सब संसार से उपरामता को प्राप्त हो जाता है।।29।।

इति श्रीमहाभारते शतसाहस्नयां संहितायां वैयासिक्यां भीष्म-
पर्वणि श्रीमद्भगवगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसन्न्यासयोगो नाम
पञ्चमोऽध्यायः।।5।।

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यगोविन्दभगवत्वपूज्यपादशिष्य श्रीमच्छंकर-
भगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये प्रकृतिगर्भो नाम
पञ्चमोऽध्यायः।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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