श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 250

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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पंचम अध्याय

यः अंतः सुखः अन्तरात्मनि सुखं यस्य सः अन्तःसुखः तथा अन्तरेव आत्मनि आराम आक्रीडा यस्य सः अन्तरारामः तथा एव अन्तरात्मा एव ज्योतिः प्रकाशो यस्य सः अन्तर्ज्योतिः एव।

जो पुरुष अन्तरात्मा में सुखवाला है- जिसको अन्तरात्मा में ही सुख है वह अन्तःसुखवाला है तथा जो अन्तरात्मा में रमण करने वाला है- जिसकी क्रीड़ा (खेल) अन्तरात्मा में ही होती है वह अन्तरारामी है और अंतरात्मा ही जिसकी ज्योति- प्रकाश है वह अन्तर्ज्योति है।

य ईदृशः स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मणि निर्वृतिं मोक्षम् इह जीवन् एव ब्रह्मभूतः सन् अधिगच्छति प्राप्नोति।।24।। किं च-

जो ऐसा योगी है वह यहाँ जीवितावस्था में ही ब्रह्मरूप हुआ ब्रह्म में लीन होना रूप मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।।24।।

लभन्ते ब्रह्मानिर्वाणमृषय: क्षीणकल्मषा: ।
छित्रद्वेधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: ॥25॥

लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणं मोक्षम् ऋषयः सम्यग्दर्शिनः सन्न्यासिनः क्षीणकल्मषाः क्षीणपापादिदोषाः छिन्नद्वैधाः छिन्नसंशया यतात्मानः संयतेन्द्रियाः सर्वभूतहिते रताः सर्वेषां भूतानां हिते आनुकूल्ये रता अहिंसका इत्यर्थः।।25।।

जिनके पापादि दोष नष्ट हो गये हैं, जिनके सब संशय क्षीण हो गये हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, जो सब भूतों के हित में अर्थात् अनुकूल आचरण में रत हैं अर्थात् अहिंसक हैं, ऐसे ऋषिजन- सम्यक् ज्ञानी- संन्यासी लोग ब्रह्मनिर्वाण को अर्थात् मोक्ष को प्राप्त होते हैं।।25।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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