श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 220

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

Prev.png

पंचम अध्याय

अत्र आह, किम्, आत्मविदः सन्न्यासकर्म योगयोः अपि असम्भव आहोस्विद् अन्यतरस्य असम्भवो यदा च अन्यतरस्य असम्भवः तदा किं कर्मसन्न्यासस्य उत कर्मयोगस्य इति असम्भवे कारणं च व्यक्तयम् इति।

अत्र उच्यते, आत्मविदो निवृत्तमिथ्याज्ञानत्वात् विपर्यज्ञानमूलस्य कर्मयोगस्य असम्भवः स्यात्।

परंतु आत्मज्ञानी के द्वारा कर्मसंन्यास और कर्मयोग का होना असंभव है, इस कारण उन्हें कल्याणकारक कहना एवं कर्मसंन्यास की अपेक्षा कर्मयोग की श्रेष्ठ बतलाना- ये दोनों बातें नहीं बन सकतीं।

पू.- आत्मज्ञानी के द्वारा कर्मसंन्यास और कर्मयोग दोनों का ही होना असंभव है अथवा दोनों में से किसी एक का ही होना असंभव है? यदि किसी एक का होना ही असम्भव है तो कर्मसंन्यास का होना असंभव है या कर्मयोग का? साथ ही उसके असंभव होने का कारण भी बतलाना चाहिए।

उ. आत्मज्ञानी का मिथ्या ज्ञान निवृत्त हो जाता है, अतः उसके द्वारा विपर्यय- ज्ञानमूलक कर्मयोग का होना ही असंभव है।

जन्मादिसर्वविक्रियारहितत्वेन निष्क्रियम् आत्मानम् आत्मत्वेन यो वेत्ति यस्य आत्मविदः सम्यग्दर्शनेन अपास्तमिथ्याज्ञानस्य निष्क्रियात्म स्वरूपावस्थानलक्षणं सर्वकर्मसन्न्यासम् उक्त्वा, तद्विपरीतस्य मिथ्याज्ञानमूलकर्तृत्वाभिमानपुरः सरस्य सक्रियात्मस्वरूपावस्थानरूपस्य कर्मयोगस्य इह शास्त्रे तत्र तत्र आत्मस्वरूपनिरूपणप्रदेशेषु सम्यग्ज्ञानमिथ्या- ज्ञानतत्कार्यविरोधाद् अभावः प्रतिपाद्यते, यस्मात्, तस्मात् आत्मविदो निवृत्तमिथ्या- ज्ञानस्य विपर्ययज्ञानमूलः कर्मयोगो न सम्भवति इति युक्तम् उक्तं स्यात्।

क्योंकि, जो जन्म आदि समस्त विकारों से रहित निष्क्रिय आत्मा को अपना स्वरूप समझ लेता है, जिसने यथार्थ ज्ञान द्वारा मिथ्या ज्ञान को हटा दिया है, उस आत्मज्ञानी पुरुष के लिए निष्क्रिय आत्म स्वरूप से स्थित हो जाना रूप सर्व कर्मों का संन्यास बतलाकर, इस गीताशास्त्र में जहाँ-तहाँ आत्मस्वरूप संबंधी निरूपण के प्रकरणों में, यथार्थज्ञान, मिथ्याज्ञान और उनके कार्य का परस्पर विरोध होने के कारण, उपर्युक्त संन्यास से विपरीत मिथ्याज्ञानमूलक कर्तृत्व- अभिमानपूर्वक सक्रिय आत्मस्वरूप में स्थित होना रूप कर्मयोग के अभाव का ही प्रतिपादन किया गया है। इसलिए जिसका मिथ्याज्ञान निवृत्त हो गया है, ऐसे आत्मज्ञानी के लिए मिथ्याज्ञानमूलक कर्मयोग संभव नहीं, यह कहना ठीक ही है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः