श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 215

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

यस्मात् कर्मयोगानुष्ठानाद् अशुद्धिक्षय हेतुकज्ञानसञ्छन्नसंशयो न निबध्यते, कर्माभिः ज्ञानाग्निदग्धकर्मत्वाद् एव। यस्मात् चज्ञानकर्मानुष्ठानविषये संशयवान् विनश्यति-

क्योंकि कर्मयोग का अनुष्ठान करने से अंतःकरण की अशुद्धि का क्षय हो जाने पर उत्पन्न होने वाले आत्मज्ञान से जिसका संशय नष्ट हो गया है ऐसा पुरुष तो ज्ञानाग्नि द्वारा उसके कर्म दग्ध हो जाने के कारण कर्मों से नहीं बँधता; तथा ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुष्ठान में संशय रखने वाला नष्ट हो जाता है-

तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मन: ।
छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥42॥

तस्मात् पापिष्ठम् अज्ञानसम्भूतम् अज्ञानाद् अविवेकाद् जातं हृत्स्थं हृदि बुद्धौ स्थितं ज्ञानासिना शोकमोहादिदोषहरं सम्यग्दर्शनं ज्ञानं तद् एव असिः खड्गः तेन ज्ञानासिना आत्मनः स्वस्य।

आत्मविषयत्वात् संशयस्य।

इसलिए अज्ञान यानी अविवेक से उत्पन्न और अंतःकरण में रहने वाले (अपने नाशक के हेतुभूत) इस अत्यंत पापी अपने संशय को ज्ञानखंड द्वारा अर्थात् शोक मोह आदि दोनों का नाश करने वाला यथार्थ दर्शन रूप जो ज्ञान है वही खड्ग है उस स्वरूप ज्ञान रूप खड्ग द्वारा (छेदन करके कर्मयोग में स्थित हो)।

यहाँ संशय आत्मविषयक है इसलिए (उसके साथ ‘आत्मनः’ विशेषण दिया गया है)।

न हि परस्य संशयः परेण छेत्तव्यता प्राप्तो येन स्वस्य इति विशिष्यते अत आत्मविषयः अपि स्वस्य एव भवति।

छित्वा एनं संशयं स्वविनाशहेतुभूतं योगं सम्यग्दर्शनोपायकर्मानुष्ठानम् आतिष्ठ कुरु इत्यर्थः। उत्तिष्ठ इदानीं युद्धाय भारत इति।।42।।

क्योंकि एक का संशय दूसरे के द्वारा छेदन करने की शंका यहाँ प्राप्त नहीं होती जिससे कि (ऐसी शंका को दूर करने के उद्देश्य से) ‘आत्मनः’ विशेषण दिया जावे, अतः (यही समझना चाहिए कि) आत्मविषयक होने से भश्री अपना कहा जा सकता है। (सुतरां संशय को ‘अपना’ बतलाना असंगत नहीं है।)

अतः अपने नाश के कारण रूप इस संशय को (उपर्युक्त प्रकार से) काटकर पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के उपाय रूप कर्मयोग में स्थित हो और हे भारत! अब युद्ध के लिए खड़ा हो जा।।42।।

इति श्रीमहाभारते शतसाहस्रयां संहितायां वैयासिक्यां भीष्म
पर्वणि श्रीमद्भवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानकर्मसन्न्यासयोगो
नाम चतुर्थोऽध्यायः।।4।

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यश्रीमच्छंकर-
भगवतः कृतौ श्रीभगवद्गीताभाष्ये ब्रह्मयज्ञप्रशंसा नाम
चतुर्थोऽध्यायः।।4।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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