श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 201

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

सोपाधिकस्य आत्मनो निरुपाधिकेन परब्रह्मस्वरूपेण एव यद् दर्शनं स तस्मिन् होमः तं कुर्वन्ति ब्रह्मात्मैकत्वदर्शननिष्ठाः सन्न्यासिन इत्यर्थः।

सारांश यह कि उपाधियुक्त आत्मा को उपाधि रहित परब्रह्म रूप से साक्षात् करना है, वही उसका उसमें हवन करना है; ब्रह्म और आत्मा के एकत्वज्ञान में स्थित हुए वे संन्यासी लोग ऐसा हवन किया करते हैं।

सः अयं सम्यग्दर्शनलक्षणो यज्ञो दैवयज्ञादिषु यज्ञेषु उपक्षिप्यते ‘ब्रह्मार्पणम्’ इत्यादिश्लोकैः ‘श्रेयान्द्रव्यमयाद्याज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप’ इत्यादिना स्तुत्यर्थम्।।25।।

श्रेयान्द्रव्यमयाद्याज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप’ इत्यादि श्लोकों से स्तुति करने के लिए यह सम्यग्दर्शनरूप यज्ञ ‘ब्रह्मार्पणम्’ इत्यादि श्लोकों द्वारा दैवयज्ञ आदि यज्ञों में सम्मिलित किया जाता है।।25।।

श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुहृति ।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुहृति ॥26॥

श्रोत्रादीनि इन्द्रियाणि अन्ये योगिनः संयमाग्निषु प्रतीन्द्रियं संयमो भिद्यते इति बहुवचनम्। संयमा एव अग्नयः तेषु जुह्वति इन्द्रियसंयमम् एव कुर्वन्ति इत्यर्थः।

शब्दादीन् विषयान अन्ये इन्द्रियाग्निषु जुह्वति इन्द्रियाणि एव अगन्यः तेषु इन्द्रियाग्निषु जुह्वति श्रोत्रादिभिः अविरुद्धविषयग्रहणं होमं मन्यन्ते।।26।। किं च-

अन्य योगीजन संयमरूप अग्नियों में श्रोत्रादि इन्द्रियों का हवन करते हैं। संयम ही अग्नियाँ हैं, उन्हीं में हवन करते हैं अर्थात् इन्द्रियों का संयम करते हैं। प्रत्येक इन्द्रिय का संयम भिन्न-भिन्न है, इसलिए यहाँ बहुवचन का प्रयोग किया गया है।

अन्य (साधक लोग) इन्द्रिय रूप अग्नियों में शब्दादि विषयों का हवन करते हैं। इन्द्रियाँ ही अग्नियाँ हैं, उन इन्द्रियाग्नियों में हवन करते हैं अर्थात् उन श्रोत्रादि इन्द्रियों द्वारा शास्त्रसम्मत विषयों के ग्रहण करने को ही होम मानते हैं।।26।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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