श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 184

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

कर्मण्येवाधिकारस्ते’ इति अत्र हि स्फुटतर उक्तः अर्थो न पुनः वक्तव्यो भवति।

सर्वत्र च प्रशस्तं बोद्धव्यं च कर्तव्यम् एव न निष्प्रयोजनं बोद्धव्यम् इति उच्यते।

न अपि नित्यानाम् अकरणाद् अभावात् प्रत्यवायभावोत्पत्तिः ‘नासतो विद्यते भावः’ इति वचनात्। ‘कथमसतः सज्जायेत’ [1] इति च दर्शितम्।

असतः सज्जन्मप्रतिषेधाद् असतः सदुत्पत्तिं ब्रुवता असद् एव सद् भवेत् सत् च असद् भवेद् इति उक्तं स्यात्। तत् च अयुक्तं सर्वप्रमाणविरोधात्।

क्योंकि ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ इस श्लोक में स्पष्ट कहे हुए अर्थ को फिर कहने की आवश्यकता नहीं होती।

तथा सभी जगह जो बात करने योग्य होती है, वही प्रशंसनीय और जानने योग्य बतलायी जाती है। निरर्थक बात को ‘जानने योग्य है’ ऐसा नहीं कहा जाता।

मिथ्याज्ञान या उसके द्वारा स्थापित की हुई आभासमात्र वस्तु जानने योग्य नहीं हो सकती।

इसके सिवा नित्यकर्मों के न करने रूप अभाव से प्रत्यवाय रूप भाव की उत्पत्ति भी नहीं हो सकती। क्योंकि ‘नासतो विद्यते भावः’ इत्यादि भगवान् के वाक्य हैं तथा ‘असत्ते सत् कैसे उत्पन्न हो सकता है?’ इत्यादि श्रुतिवाक्य भी पहले दिखलाये जा चुके हैं।

इस प्रकार असत् से सत् की उत्पत्ति का निषेध कर दिया जाने पर भी जो असत् से सत् की उत्पत्ति बतलाते हैं, उनका तो यह कहना हुआ कि असत् तो सत् होता है और सत् असत् होता है, परंतु यह सब प्रमाणों से विरुद्ध होने के कारण अयुक्त है।

न च निष्फलं विदध्यात् कर्म शास्त्रं दुःखस्वरूपत्वाद् दुःखस्य च बुद्धिपूर्वकतया कार्यत्वानुपपत्तेः।

तदकरणे च नरकपाताभ्युपगमे अनर्थाय एव उभयथा अपि करणे अकरणे च शास्त्रं निष्फलं कल्पितं स्यात्।

तथा शास्त्र भी निरर्थक कर्मों का विधान नहीं कर सकता, क्योंकि सभी कर्म (परिश्रम की दृष्टि से) दुःखरूप हैं और जान बूझकर (बिना प्रयोजन) किसी का भी दुख में प्रवृत्त होना संभव नहीं।

तथा उन नित्यकर्मों को न करने से नरक प्राप्ति होती है, ऐसा शास्त्र का आशय मान लेने पर तो यह मानना हुआ कि कर्म करने और न करने में दोनों प्रकार से शास्त्र अनर्थ का ही कारण है, अतः व्यर्थ है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (छा. उ. 6।2।2)

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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