श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 181

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

य एवं कर्माकर्मविभागज्ञः स बुद्धिमान् पण्डितो मनुष्येषु स युक्तो योगी कृत्स्नकर्मकृत् च सः अशुभाद् मोक्षितः कृतकृत्यो भवति इत्यर्थः।

अयं श्लोकः अन्यथा व्याख्यातः कैश्चित्, कथम्, नित्यानां किल कर्मणाम् ईश्वरार्थे अनुष्ठीयमानानां तत्फलाभावाद् अकर्माणि तानि उच्यन्ते गौण्या वृत्या। तेषां च अकरणम् अकर्म तत् च प्रत्यवायफलत्वात् कर्म उच्यते गौण्या एव वृत्या।

तत्र नित्ये कर्मणि अकर्म यः पश्येत् फला भावात्, यथा धेनुः अपि गौः अगौः उच्यते क्षीराख्यं फलं न प्रयच्छति इति तद्वत्। तथा नित्याकरणे तु अकर्मणि च कर्म यः पश्येद् नरकादिप्रत्यवायफलं प्रयच्छति इति।

न एतद् युक्तं व्याख्यानम् एवं ज्ञानाद् अशुभाद् मोक्षानुपपत्तेः यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्। इति भगवता उक्तं वचनं बाध्येत।

इस प्रकार जो कर्म और अकर्म के विभाग को (तत्व से) जानने वाला है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान- पंडित है, वह युक्त- योगी है और संपूर्ण कर्म करने वाला भी वही अर्थात् वह पुण्य- पापरूप अशुभ से मुक्त हुआ कृत्यकृत्य है।

कई टीकाकार इस श्लोक की दूसरी तरह से ही व्याख्या करते हैं। कैसे? ईश्वर के लिए किए जाने वाले जो (पञ्चमहायज्ञादि) नित्यकर्म हैं, उनका फल नहीं मिलता इस कारण वे गौणी वृत्ति से अकर्म कहे जाते हैं? (इसी प्रकार) उन नित्यकर्मों के करने का नाम अकर्म है, वह भी पापरूप फल के देने वाला होने के कारण गौणरूप से ही कर्म कहा जाता है।

जैसे कोई गौ ब्याही हुई होने पर भी यदि दूधरूप फल नहीं देती तो वह अगौ कह दी जाती है, वैसे ही नित्यकर्म में, उसके पल का अभाव होने के कारण जो अकर्म देखता है और नित्यकर्म का न करना रूप जो अकर्म है उसमें कर्म देखता है; क्योंकि वह नरकादि विपरीत फल देने वाला है।

यह व्याख्या ठीक नहीं है क्योंकि इस प्रकार जानने से अशुभ से मुक्ति नहीं हो सकती अर्थात् जन्म मरण बंधन नहीं टूट सकता। अतः यह अर्थ मान लेने से भगवान् के कहे हुए ये वचन कि ‘जिसको जानकर तू अशुभ से मुक्त हो जाएगा’ कट जायेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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