श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 179

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

एवम् इह अपि अकर्मणि अहं करोमि इति कर्मदर्शनं कर्मणि च अकर्मदर्शनं विपरीतदर्शनं येन तन्निराकरणार्थम् उच्यते ‘कर्मणि अकर्म यः पश्येत्’ इत्यादि।

इसी तरह यहाँ भी अकर्म में (क्रियारहित आत्मा में) ‘मैं करता हूँ’ यह कर्म का देखना और (त्याग रूप) कर्म में (मैं कुछ नहीं करता इस) अकर्म का देखना ऐसे विपरीत देखना होता है, अतः उसका निराकरण करने के लिए ‘कर्मणि अकर्म यः पश्येत्’ इत्यादि वचन भगवान् कहते हैं।

तद् एतद् उक्तप्रतिवचनम् अपि असकृद् अत्यन्तविपरीतदर्शनभाविततया मोमुह्यमानो लोकः श्रुतम् अपि असकृत् तत्वं विस्मृत्य मिथ्याप्रसंगम् अवतार्य अवतार्य चोदयति इति पुनः पुनः उत्तरम् आह भगवान् दुर्विज्ञेयत्वं च आलक्ष्य वस्तुनः।

‘अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयम्’ ‘न जायते म्रियते’ इत्यादिना आत्मनि कर्माभावः श्रुतिस्मृति न्यायप्रसिद्ध उक्तो वक्ष्यमाणः च।

तस्मिन् आत्मनि कर्माभावे अकर्मणि कर्मविपरीतदर्शनम् अत्यन्तनिरूढम्।

यतः ‘किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।’

देहाद्याश्रयं कर्म आत्मनि अध्यारोप्य अहं कर्ता मम एतत् कर्म मया अस्य फलं भोक्तव्यम् इति च।

यद्यपि यह विषय अनेक बार शंका- समाधानों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है तो भी अत्यंत विपरीत ज्ञान की भावना से अत्यंत मोहित हुए लोग अनेक बार सुने हुए तत्व को भी भूलकर मिथ्या प्रसंग ला लाकर शंका करने लग जाते हैं, इसलिए तथा आत्मतत्व को दुर्विज्ञेय समझकर भगवान् पुनः पुनः उत्तर देते हैं।

श्रुति, स्मृति और न्याय सिद्ध जो आत्मा में कर्मों का अभाव है वह ‘अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयम्’ ‘न जायते म्रियते’ इत्यादि श्लोकों से कहा जा चुका और आगे भी कहा जाएगा।

उस क्रियारहित आत्मा में अर्थात् अकर्म में कर्म का देखना रूप जो विपरीत दर्शन है, यह लोगों में अत्यंत स्वाभाविक सा हो गया है।

क्योंकि ‘कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इस विषय में बुद्धिमान् भी मोहित हैं।’

अर्थात् देह - इन्द्रियादि से होने वाले कर्मों का आत्मा में अध्यारोप करके ‘मैं कर्ता हूँ’ ‘मेरा यह कर्म है’ ‘मुझे इसका फल भोगना है’ इस प्रकार (लोग मानते हैं।)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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