श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
चतुर्थो अध्यायचातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: । चातुर्वर्ण्यं चत्वार एव वर्णाः चातुर्वर्ण्यं मया ईश्वरेण सृष्टम् उत्पादितम्, ‘ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्’ इत्यादिश्रुतेः, गुणकर्मविभागशो गुणविभागशः कर्मविभागशः च गुणाः सत्वरजस्तमांसि। तत्र सात्विकस्य सत्वप्रधानस्य ब्राह्मणस्य शमो दमः तप इत्यादीनि कर्माणि। सत्वोपसर्जनरजः प्रधानस्य क्षत्रियस्य शौर्यतेजः प्रभृतीनि कर्माणि। तमउपसर्जनरजः प्रधानस्य शूद्रस्य शुश्रूषा एव कर्म। (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र- इन) चारों वर्णों का नाम चातुर्वर्ण्य है। सत्व, रज, तम- इन तीनों गुणों के विभाग से तथा कर्मों के विभाग से यह चारों वर्ण मुझ ईश्वर द्वारा रचे हुए- उत्पन्न किए हुए हैं। ‘ब्राह्मण इस पुरुष का मुख हुआ’ इत्यादि श्रुतियों से यह प्रमाणित है। उनमें से सात्विक- सत्वगुण प्रधान ब्रह्मा के शम, दम, तप इत्यादि कर्म हैं। जिसमें सत्वगुण गौण है और रजोगुण प्रधान है, उस क्षत्रिय के शूरवीरता, तेज प्रभृति कर्म हैं। जिसमें तमोगुण गौण और रजोगुण प्रधान है, ऐसे वैश्य के कृषि आदि कर्म हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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