श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
तृतीय अध्यायतत् च- और उस- कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। कर्म ब्रह्मोद्भवं ब्रह्म वेदः स उद्भवः कारणं यस्य तत् कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि जानीहि। ब्रह्म पुनः वेदाख्यम् अक्षर समुद्भवम् अक्षरं ब्रह्म परमात्मा समुद्भवो यस्य तद् अक्षरसमुद्भवं ब्रह्म वेद इत्यर्थः। यस्मात् साक्षात् परमात्माख्याद् अक्षरात् पुरुषनिः श्वासवत् समुद्भूतं ब्रह्म, तस्मात् सर्वार्थ प्रकाशकत्वात् सर्वगतम्। सर्वगतम् अपि सद् नित्यं सदा यज्ञविधि- प्रधानत्वाद् यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।15।। क्रिया रूप कर्म को तू वेदरूप ब्रह्म से उत्पन्न हुआ जान, अर्थात् कर्म की उत्पत्ति का कारण वेद है, ऐसे जान और वेद रूप ब्रह्म अक्षर से उत्पन्न हुआ है अर्थात् अविनाशी परब्रह्म परमात्मा वेद की उत्पत्ति का कारण है । वेदरूप ब्रह्म साक्षात् परमात्मा नामक अक्षर से पुरुष के निःश्वास की भाँति उत्पन्न हुआ है, इसलिए वह सब अर्थों को प्रकाशित करने वाला होने के कारण सर्वगत है। तथा यज्ञ विधि में वेद की प्रधानता होने के कारण वह सर्वगत होता हुआ ही सदा यज्ञ में प्रतिष्ठित है।।15।। एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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