श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 139

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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तृतीय अध्याय

तत् च- और उस-

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।15।।

कर्म ब्रह्मोद्भवं ब्रह्म वेदः स उद्भवः कारणं यस्य तत् कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि जानीहि। ब्रह्म पुनः वेदाख्यम् अक्षर समुद्भवम् अक्षरं ब्रह्म परमात्मा समुद्भवो यस्य तद् अक्षरसमुद्भवं ब्रह्म वेद इत्यर्थः।

यस्मात् साक्षात् परमात्माख्याद् अक्षरात् पुरुषनिः श्वासवत् समुद्भूतं ब्रह्म, तस्मात् सर्वार्थ प्रकाशकत्वात् सर्वगतम्।

सर्वगतम् अपि सद् नित्यं सदा यज्ञविधि- प्रधानत्वाद् यज्ञे प्रतिष्ठितम्।।15।।

क्रिया रूप कर्म को तू वेदरूप ब्रह्म से उत्पन्न हुआ जान, अर्थात् कर्म की उत्पत्ति का कारण वेद है, ऐसे जान और वेद रूप ब्रह्म अक्षर से उत्पन्न हुआ है अर्थात् अविनाशी परब्रह्म परमात्मा वेद की उत्पत्ति का कारण है । वेदरूप ब्रह्म साक्षात् परमात्मा नामक अक्षर से पुरुष के निःश्वास की भाँति उत्पन्न हुआ है, इसलिए वह सब अर्थों को प्रकाशित करने वाला होने के कारण सर्वगत है।

तथा यज्ञ विधि में वेद की प्रधानता होने के कारण वह सर्वगत होता हुआ ही सदा यज्ञ में प्रतिष्ठित है।।15।।

एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।16।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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