युधिष्ठिर का दिव्य लोक में जाना

महाभारत स्वर्गारोहण पर्व के अंतर्गत तीसरे अध्याय में वैशम्पायन जी ने युधिष्ठिर का मानव शरीर का त्याग करके दिव्य लोक में जाने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर का दिव्य लोक में जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! धर्म के यों कहने पर तुम्‍हारे पूर्वपितामह राजर्षि युधिष्ठिर ने धर्म तथा समस्‍त स्‍वर्गवासी देवताओं के साथ जाकर मुनिजनवन्दित परम पावन पुण्‍यसलिला देवनदी गंगा जी में स्‍नान किया। स्‍नान करके राजा ने तत्‍काल अपने मानवशरीर को त्‍याग दिया। तत्‍पश्चात दिव्‍यदेह धारण करके धर्मराज युधिष्ठिर वैरभाव से रहित हो गये। मन्‍दाकिनी के जल में स्‍नान करते ही उनका सारा संताप दूर हो गया। तत्‍पश्चात देवताओं से घिरे हुए बुद्धिमान कुरुराज युधिष्ठिर महर्षियों के मुख से अपनी स्‍तुति सुनते हुए धर्म के साथ उस स्‍थान को गये जहाँ वे पुरुषसिंह शूरवीर पाण्‍डव और धृतराष्‍ट्रपुत्र क्रोध त्‍यागकर आनन्‍दपूर्वक अपने-अपने स्‍थानों पर रहते थे।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व अध्याय 3 श्लोक 21-44

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