तृतीय (3) अध्याय: स्वर्गारोहण पर्व
महाभारत स्वर्गारोहण पर्व तृतीय अध्याय: श्लोक 21-44 का हिन्दी अनुवाद
देवराज इन्द्र जब इस प्रकार कह रहे थे, उसी समय शरीर धारण करके आये हुए साक्षात धर्म ने अपने पुत्र कौरवराज युधिष्ठिर से कहा- "महाप्राज्ञ नरेश! मेरे पुत्र! तुम्हारे धर्म विषयक अनुराग, सत्यभाषण, क्षमा और इन्द्रियसंयम आदि गुणों से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। राजन! यह मैंने तीसरी बार तुम्हारी परीक्षा ली थी। पार्थ! किसी भी युक्ति से कोई तुम्हें अपने स्वभाव से विचलित नहीं कर सकता। द्वैतवन में अरणिकाष्ठ का अपहरण करने के पश्चात जब यक्ष के रूप में मैंने तुमसे कई प्रश्न किये थे, वह मेरे द्वारा तुम्हारी पहली परीक्षा थी। उसमें तुम भली-भाँति उत्तीर्ण हो गये। भारत! फिर द्रौपदी सहित तुम्हारे सभी भाइयों की मृत्यु हो जाने पर कुत्ते का रूप धारण करके मैंने दूसरी बार तुम्हारी परीक्षा ली थी। उसमें भी तुम सफल हुए। अब यह तुम्हारी परीक्षा का तीसरा अवसर था; किंतु इस बार भी तुम अपने सुख की परवा न करके भाइयों के हित के लिये नरक में रहना चाहते थे, अत: महाभाग! तुम इस तरह से शुद्ध प्रमाणित हुए। तुम में पाप का नाम भी नहीं है; अत: सुखी होओ। पार्थ! प्रजानाथ! तुम्हारे भाई नरक में रहने के योग्य नहीं हैं। तुमने जो उन्हें नरक भोगते देखा है, वह देवराज इन्द्र द्वारा प्रकट की हुई माया थी। तात! समस्त राजाओं को नरक का दर्शन अवश्य करना पड़ता है; इसलिये तुमने दो घड़ी तक यह महान दु:ख प्राप्त किया है। नरेश्वर! सव्यसांची अर्जुन, भीमसेन, पुरुषप्रवर नकुल-सहदेव अथवा सत्यवादी शूरवीर कर्ण- इनमें से कोई भी चिरकाल तक नरक में रहने के योग्य नहीं है। भरतश्रेष्ठ! राजकुमारी कृष्णा भी किसी तरह नरक में जाने योग्य नहीं है। आओ, त्रिभुवनगामिनी गंगा जी का दर्शन करो।" जनमेजय! धर्म के यों कहने पर तुम्हारे पूर्वपितामह राजर्षि युधिष्ठिर ने धर्म तथा समस्त स्वर्गवासी देवताओं के साथ जाकर मुनिजनवन्दित परम पावन पुण्यसलिला देवनदी गंगा जी में स्नान किया। स्नान करके राजा ने तत्काल अपने मानव शरीर को त्याग दिया। तत्पश्चात दिव्य देह धारण करके धर्मराज युधिष्ठिर वैरभाव से रहित हो गये। मन्दाकिनी के जल में स्नान करते ही उनका सारा संताप दूर हो गया। तत्पश्चात देवताओं से घिरे हुए बुद्धिमान कुरुराज युधिष्ठिर महर्षियों के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए धर्म के साथ उस स्थान को गये, जहाँ वे पुरुषसिंह शूरवीर पांडव और धृतराष्ट्रपुत्र क्रोध त्यागकर आनन्दपूर्वक अपने-अपने स्थानों पर रहते थे। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्वर्गारोहण पर्व में युधिष्ठिर का देहत्याग विषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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