टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जनाँ
- ↑ ज्यूँ... ज्यूँ = जैसे हो वैसे, सभी प्रकार से ( देखो - पद 107 )। पलपल भीतर = प्रत्येक क्षण। औगणहारी = अवगुण से भरी। औगण... जी = मेरे अवगुणों का ख्याल न करना ( देखो - ‘हमारे प्रभु अवगुण चित्त न धरो’ - सूरदास )।
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