म्‍हाँरी सुध ज्‍यूँ जानो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरह निवेदन


राग कोशी


म्‍हाँरी सुध ज्‍यूँ जानो ज्‍यूँ लीजो जी ।।टेक।।
पल-पल भीतर पंथ निहारूँ, दरसण म्‍हाँने दीजो जी ।
मैं तो हूँ बहु औगणहारी, औगण चित मत दीजो जी ।
मैं तो दासी थाँरे चरण कँवल कंवल[1] की, मिल बिछुरन मत कीजो जी ।
मीराँ तो सतगुर जी सरणे, हरि चरणाँ चिंत दीजो जी ।।112।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जनाँ
  2. ज्यूँ... ज्यूँ = जैसे हो वैसे, सभी प्रकार से ( देखो - पद 107 )। पलपल भीतर = प्रत्येक क्षण। औगणहारी = अवगुण से भरी। औगण... जी = मेरे अवगुणों का ख्याल न करना ( देखो - ‘हमारे प्रभु अवगुण चित्त न धरो’ - सूरदास )।

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