मैं बिरहणि बैठी जागूं -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहोद्गार

राग बागेश्‍वरी


मैं बिरहणि बैठी जागूँ, जगत सब सोवै री आली ।।टेक।।
बिरहणि बैठी रंगमहल में मोतियन की लड़ पोवै ।
इक बिरहणि हम ऐसी देखी, अँसुवन की माला पोवै ।
तारा गिण गिण रैण बिहानी, सुख की घड़ी कब आवै ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, मिल के बिछुड़ न जावै ।।86।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जागूँ = जगती हूँ। पौवै = पिरोती हूँ। गिण गिण = गिन गिन कर, देखते देखते। बिहानी = बीती बीत गई। ( देखो - ‘तारा गिणत निराश’ - पद ( 68 ) और, ‘अणरत सुख सोवणां, रातै नींद न आई। ज्यूँ जल टुटै मंछली, यूं बेलत विहाइ - कबीर)।

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