मीरां तू मत गरजे माइड़ी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपना मार्ग


मीराँ—तू मत गरजे माइड़ी साधाँ दरसण जाती ।
राम नाम हिरदे बसैं, माहिले मद माती ।
मा—माई कहै सुन धीहड़ी, काहे गुण फूली ।
लोक सोवै सुख नींदड़ी थे क्‍यूँ रैणज भूली ।
मीराँ—गेली दुनिया बावली, ज्‍याँ कूँ राम न भावे ।
ज्‍यांरे हिरदे हरि बसे, त्‍याँ कूँ नींद न आवे ।
चौबास्‍याँ की बावड़ी, ज्‍याँ कूँ नीर न पीजै ।
हरि नारे अमृत झरै, ज्‍याँ कूँ नीर न पीजै ।
हरि नारे अमृत झरै, ज्‍याँ की आस करीजै ।
रूप सुरंगा राम जी, मुख निरखत जीजै ।
मीराँ व्‍याकुल विरहिणी, अपनी कर लीजै। ।।28।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. माइडी = मा। गरजे = बिगड़ कर बोल। माहिले = भीतर, अन्तर। धीहड़ी = बेटी। गुण फूली = गर्वीली बनी फिरती है। थे = तू। रैणत = रात भर। भूली = मगन रहा करती है। सुखनींदड़ी = सुख की नींद वा निश्चिन्त। गेली = मूर्ख, गैली। ज्याँकूँ = जिसे। ज्याँरे = जिसके। त्याँकू = उसे। चैमास्याँ की बावड़ी = चैमासे वा वर्षाऋतु में भरने वाली बावली या पोखरी। रूप सुरंगा सुन्दर, सौन्दर्यशाली।

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