मीराँबाई की पदावली पृ. 54

मीराँबाई की पदावली

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मीराँबाई व गोदा

श्री सुक्तियों के छठें दशक में जो गोदा ने, स्वप्न में 'माधव' के साथ होने वाले, अपने विवाह का वर्णन किया है, वह मीराँबाई वाले 'जगदीश' के साथ संपन्न स्वप्न विवाह[1]का ही एक वृहत् रूपान्तर जान पड़ता है और उनके चौदहवें वा अंतिम दशक में आये हुए विवरणों में प्राय: मीराँ की ही भाँति, श्रीकृष्ण दर्शनों का आनंद अनुभव करती हुई भी दीख पड़ती है। इसके सिवाय, जिस प्रकार, मीरांबाई पपीहे को संबोधित कर अपनी विरह-दशा का वर्णन करतीं वा कोए द्वारा 'पिव' के पास अपना 'कलेजा' भेजती हैं[2] प्राय: उसी प्रकार गोदा भी उनके पंचम दशक में अपनी विरह कथा किसी कोयल के प्रति निवेदन करती हुई उससे सहायतार्थ प्रार्थना करती है। अपने ईष्टदेव को प्राप्त करने के लिए, इसी प्रकार, व्रतों का अनुष्ठान करने वाली गोदा, अपने उक्त 'श्रीव्रत' के दूसरे श्लोक में, कहती है कि, ऐ संसार के भाग्यशाली लोगों ! तुम ध्यान पूर्वक सुनो और जान लो कि हमें क्षीरसागर में शेष की शय्या पर सोने वाले उस परम स्वामी के निमित्त व्रतपालनार्थ, उनके चरणों में गानपूर्वक, क्या–क्या करना आवश्यक है।

हम ठीक सूर्योदय के समय स्नान करेंगी, घी दूध का परित्याग कर देंगी, आँखों में काजल न लगाएँगी, केशों को फूलों से न सजाएँगी, कोई अयोग्य काम न करेंगी और न कोई अनुचित शब्द की उच्चारण करेंगी, बल्कि दया दाक्षिण्य व आनन्द पूर्वक अपने मार्ग पर सदा अटल रहकर अपना जीवन-यापन करती रहेंगी। आह, इलोरेम्ब्रावाय!"[3] और स्पष्ट है कि, मीरांबाई ने भी प्राय: ऐसी ही भावनाओं द्वारा प्रेरित होकर, अपने कई समान पदों, विशेष कर पद 25, 27 अथवा 48 की रचना की हैं। इसके सिवाय उसी काव्य के सातवें श्लोक में जो ग्वालिनों के प्रात:कालीन दधि-मंथन का वर्णन आया है,[4] वह भी, कई अंशों में, मीरांबाई के पद 168 में किए गए सुंदर चित्रण के ही अनुसार है। 'रंगनाथकी' गोदा एवं 'श्री गिरधर की प्रेमिका' मीरां के जीवन की घटनाओं तथा कृतियों में कुछ ऐसी विचित्र समानता है कि उसके आधार पर लोग एक को दूसरी का अवतार तक समझने लगते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद 27
  2. पद 74
  3. j. 5. Hooper : Hymns of the Alvars p.50.
  4. Ibid p. 52.

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