प्रेम सुधा सागर पृ. 2

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
प्रथम अध्याय

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भगवन! आपने अभी बतलाया था कि बलराम जी रोहिणी के पुत्र थे। इसके बाद देवकी के पुत्रों में भी आपने उनकी गणना की। दूसरा शरीर धारण किये बिना दो माताओं का पुत्र होना कैसे सम्भव है? असुरों को मुक्ति देने वाले और भक्तों को प्रेम वितरण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण अपने वात्सल्य-स्नेह से भरे हुए पिता का घर छोड़कर ब्रज में क्यों चले गये? यदुवंश शिरोमणि भक्त वत्सल प्रभु ने नन्द आदि गोप-बंधुओं के साथ कहाँ-कहाँ निवास किया? ब्रह्मा और शंकर का भी शासन करने वाले प्रभु ने ब्रज में तथा मधुपुरी में रहकर कौन-कौन सी लीलाएँ कीं? और महाराज! उन्होंने अपनी माँ के भाई मामा कंस को अपने हाथों क्यों मार डाला? वह मामा होने के कारण उनके द्वारा मारे जाने योग्य तो नहीं था। मनुष्याकार सच्चिदानन्दमय विग्रह प्रकट करके द्वारकापुरी में यदुवंशियों के साथ उन्होंने कितने वर्षों तक निवास किया? और उन सर्वशक्तिमान प्रभु की पत्नियाँ कितनी थीं? मुने! मैंने श्रीकृष्ण की जितनी लीलाएँ पूछी हैं और जो नहीं पूछीं हैं, वे सब आप मुझे विस्तार से सुनाइये; क्योंकि आप सब कुछ जानते हैं और मैं बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें सुनना चाहता हूँ। भगवन! अन्न की तो बात ही क्या, मैंने जल का भी परित्याग कर दिया है। फिर भी वह असह्य भूख-प्यास[1] मुझे तनिक भी नहीं सता रही है; क्योंकि मैं आपके मुखकमल से झरती हुई भगवान की सुधामयी लीला-कथा का पान कर रहा हूँ।

सूत जी कहते हैं - शौनक जी! भगवान के प्रेमियों में अग्रगण्य एवं सर्वज्ञ श्री शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित का ऐसा समीचीन प्रश्न सुनकर[2] उनका अभिनन्दन किया और भगवान श्रीकृष्ण की उन लीलाओं का वर्णन प्रारम्भ किया, जो समस्त कलिमलों को सदा के लिए धो डालती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिसके कारण मैंने मुनि के गले में मृत सर्प डालने का अन्याय किया था
  2. जो संतों की सभा में भगवान की लीला के वर्णन हेतु हुआ करता है

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