मीराँबाई की पदावली
प्रेमासक्ति राग नीलांबरी
नैणा लोभी रे बहुरि सके नहिं आइ ।। टेक ।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ललच
- ↑ सारँग ओट तजे कुल आँकुस वदन दिये मुसकाय ।
- ↑ चपल
- ↑ मीरां प्रभु गिरधरलाल बिन
- ↑ नैणा = नेत्र, नयन। बहुरि = लौटकर। रूँम रूँम = रोम रोम। ललकि रहे = पाने की गहरी इच्छा वा अीलाषा करने लगे। ( देखो - ‘ललकत लखि ज्यों कँमाल पातरी सुनाज की’ - तुलसीदास )। ललचाइ = मोहित व अधीर होकर। ठाढ़ी = खड़ी रही। ग्रिह = घर के द्वार पर। आपणे = अपने। परकासत = प्रकाश फैलाते हुए। हेली = सखी। वरजि वरजहि = बार बार बरजते हैं। अटक = रोक। परहथ = पराये हाथों। ( देखो - ‘बंसी बजावत आनि कढ़ो सो गली में अली कछू टोना सों डारै। हेरि चितै तिरछी करि दृष्टि चलो गयो मोहन ‘मूठि सी मारै’ - रसखान; तथा ‘नंद को नवेलो अलबेली छैल रंग भर्यो, काल्हि मेरे द्वार ह्नैके गावत इतै गयौ।...मृदु मुसुक्याय मुरि, मो तन चितै गयौ।.... नैकुही मैं मेरो कछु मोपै न रहन पायो, औचकही आइ भटू लूट सी बितै गयौ’ - घनानन्द )। सब... चडाइ = सभी कुछ अंगीकार कर लिया वा मान लिया। ( देखो - ‘अब गाँव रे नाँव रे कोई धरौ, हम साँवरे रंग रँगी सो रँगी’ - ठाकुर )
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