नहि भावै थांरो देसलड़ो रंगरूड़ो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
स्‍पष्ठोक्ति

राग खम्‍माच


नहि[1] भावै थाँरो देसलड़ो रँगरूड़ो ।। टेक ।।
थाँरा देसाँ में राणा साध नहीं छै, लोग बसै सब कूड़ो ।
गहणा गांठी राणा हम सब त्‍यागा, त्‍याग्‍यो कररो चूड़ो ।
काजल टीकी हम सब त्‍यागा, त्‍याग्‍यो छै बाँधन जूड़ो ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, बर पायो छै पूरो ।।35।।[2]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राणाजी थांरो देसड़लो रंगरूढो ।
    थाँरे मुलक में भक्ति नहीं छे, लोग बसें सब कूड़ो ।
    पाट पटम्बर सबही मैं त्यागा, सिर बाँधूली जूड़ो ।
    मणिक मोती सबही मैं त्यागा, तज दियो कर को चूड़ो ।
    मेवा मिसरी मैं सबही त्यागा, त्याग्या छै सक्कर बूरो ।
    तनकी सास कबहुँ नहिं कीनी, ज्यूँ रण माहीं सूरो ।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर, वर पायो मैं पूरो ॥
  2. भावै = सुहाता है, अच्छा लगता है। थाँरो = आपका। देशलड़ो = देश। रंगरूड़ो = अच्छे रंग का, विचित्र, सुन्दर। देसाँ में = देश वा राज्य में। राणा = मीराँ के देवर महाराजा उदयपुर की पदवी। साध = साधु संत। छै = हैं। कूड़ो = असज्जन, निकम्मे। गहणाँ गाँठी = आभूषण। त्याग्या = त्याग दिये। कररो = हाथ की। चूड़ो = हाथी दाँत की चूडि़याँ। टीकी = बिंदी। जूड़ो = बेणी।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः