टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राणाजी थांरो देसड़लो रंगरूढो ।
थाँरे मुलक में भक्ति नहीं छे, लोग बसें सब कूड़ो ।
पाट पटम्बर सबही मैं त्यागा, सिर बाँधूली जूड़ो ।
मणिक मोती सबही मैं त्यागा, तज दियो कर को चूड़ो ।
मेवा मिसरी मैं सबही त्यागा, त्याग्या छै सक्कर बूरो ।
तनकी सास कबहुँ नहिं कीनी, ज्यूँ रण माहीं सूरो ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, वर पायो मैं पूरो ॥ - ↑ भावै = सुहाता है, अच्छा लगता है। थाँरो = आपका। देशलड़ो = देश। रंगरूड़ो = अच्छे रंग का, विचित्र, सुन्दर। देसाँ में = देश वा राज्य में। राणा = मीराँ के देवर महाराजा उदयपुर की पदवी। साध = साधु संत। छै = हैं। कूड़ो = असज्जन, निकम्मे। गहणाँ गाँठी = आभूषण। त्याग्या = त्याग दिये। कररो = हाथ की। चूड़ो = हाथी दाँत की चूडि़याँ। टीकी = बिंदी। जूड़ो = बेणी।
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