राणाजी मुझे यह बदनामी लगे मीठी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राणाजी मुझे यह बदनामी लगे मीठी ।। टेक ।।
कोई निन्‍दो कोई बिन्‍दो, मैं चलूँगी चाल अपूठी ।
साँकली गली में सतगुर मिलिया, क्‍यूँ कर फिरूँ अपूठी ।
सतगुर जी सूँ बातज करताँ, दुरजन लोंगाँ ने दीठी ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, दुरजन जलो जा अँगीठी ।।36।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मीठी = भली, अच्छी। अपूठी = उल्टी, भिन्न मार्ग से। ( देखो - ‘अब गाँव रे’ नांव रे कोई धरौ, हम साँवरे रंग रँगी सो रँगी - ठाकुर ) बातज = बातें। करताँ = करते समय। दीठी = देखा।

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