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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
एकादश: सर्ग:
सामोद-दामोदर:
अथ विंश सन्दर्भ:
20. गीतम्
पद्यानुवाद बालबोधिनी- सखी कहने लगी हे राधिके! वे मधुरिपु श्रीकृष्ण तुम्हारे सम्पूर्ण रूप से अनुगत हो गये हैं। तुम उनके पास चलो एवं शीघ्र ही अभिसरण करो। देर मत करो। अपने मधुर-मधुर वचनों से उन्होंने तुमसे अनुनय विनय किया है। तुम्हारे चरणों में सर्वात्मभाव से प्रणिपात किया है। तुम्हारे स्वागत की तैयारी में संलग्न होकर इस समय वेतसी कुंज के अन्तर्गत केलि-शय्या पर आसीन हो रहे हैं, तुम उनका अनुसरण करो। हे मुग्धे! तुम कितनी भोली हो, प्रिय के अभिसरण काल को भी नहीं जानती हो। चलो उनका अनुसरण करते हुए सर्वात्मभाव को प्राप्त हो जाओ। प्रस्तुत श्लोक में 'राधिके' में 'क' प्रत्यय उसके मुग्धत्व को द्योतित करता है। मधुसूदन का अनुसरण करो। विलम्ब मत करो, यह ध्रुव पद है। तञ्जुल आदि विभाव से निकुंज उपादान इत्यादि प्रकट हो रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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