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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
चतुर्थ: सर्ग:
स्निग्ध-मधुसूदन:
अथ अष्टम: सन्दर्भ
8. गीतम्
विलिखति रहसि कुरंग-मदेन भवन्तमसमशर-भूतम्। अनुवाद- हे श्रीकृष्ण! श्रीराधा एकान्त में कस्तूरी से, तुम्हें साक्षात्र कन्दर्प मान आम्रमञ्जरी का बाण धारण किये हुए तुम्हारी मोहिनी मूर्त्ति चित्रित करती हैं और वाहन स्थान पर मकर (घडियाल) बनाकर प्रणाम करती हैं। पद्यानुवाद बालबोधिनी- जब श्रीराधा एकान्त में बैठी होती हैं तो कस्तूरी के रस से आपका चित्र रचती हैं कामदेव के रूप में। क्योंकि आपके अतिरिक्त चित्त-उन्मादकारी और कौन हो सकता है अथवा आप ही उसकी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। इसके पश्चात् आपके हाथ में काम का सबसे शक्तिशाली बाण आम्रमञ्जरी को अंकित कर देती है। कामदेवता के रूप में आपको अभिलिखित कर वाहन के स्थान पर मकर बना देती हैं, पुनश्च काम-ताप से मुक्ति पाने के लिए आपको प्रणाम करती हैं, स्तवन करती हैं। प्रस्तुत पद्य में उपमा अलंकार है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- [पुनश्च] रहसि (एकान्ते) कुरंगमदेन (कस्तूर्य्या) असमशरभूतं (कामस्वरूपं) भवन्तं स्वचित्तोन्मादकत्वात् विलिखति, अध: (तस्य कामरूपस्य भवत: अधस्तात्र) मकरं (कामवाहनं) [विन्यस्य] [लिखितस्य मदनभूतस्य भवत:] करे (हस्ते) नवचूतं (चूतांकुरस्वरूपं) शरं विनिधाय (लिखित्वा) [त्वदन्य: कामो नास्तीति मत्वा] प्रणमति च ॥4॥
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