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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीता में भक्ति योग
ऐसी ही स्थिति के महापुरुष कारक बनकर जगत् में आविर्भूत हुआ करते हैं। अव्यक्तोपासक परम धाम में पहुँच कर मुक्त हो वहीं रह जाते हैं, वे परमात्मा में घुल-मिलकर एक हो जाते हैं, वे वहाँ से वापस लौट ही नहीं सकते। इससे न तो उन्हें परमधाम जाने के मार्ग में साकार भगवान् का संग उनके दर्शन, उनके साथ वार्तालाप और उनकी लीला देखने का आनन्द मिलता है और न वे परम धाम के पट्टेदार होकर सगुण भगवान् की लीला में सम्मिलित हो उन्हीं की भाँति निपुण नाविक बनकर वापस ही आते हैं। ‘यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह’ के अनुसार उनके बुद्धि आदि करण जो उनको दिव्य धाम में छोड़कर वहाँसे वापस लौटते हैं, वे भी साधकों के सामने अव्यक्तो पासना-पथ के उन्हीं नाना प्रकार के क्लेशों के दृश्य रखकर परमधाम की प्राप्ति को ऐसी कष्ट साध्य और दुःख लब्ध बता देते हैं कि लोग उसे सुनकर ही काँप जाते हैं। उनका वैस दृश्य सामने रखना ठीक ही है; क्यों कि उन्होंने अव्यक्तोपासना के कण्टका कीर्ण मार्ग में वही देखे हैं। उन्हें प्रेममय श्यामसुन्दर के सलोने मुखड़े का तो कभी दर्शन हुआ ही नहीं, उन्हें वह सौन्दर्य-सुधा कभी नसीब ही नहीं हुई, तब वे उस दिव्य रस का स्वाद लोगों को कैसे चखाते? इसके विपरीत व्यक्तोपासक अपनी मुक्ति को भगवान् के खजाने में धरोहर के रूप में रखकर उनकी मंगलमयी आज्ञा से पुनः संसार में आते हैं और भगवत्प्रेम के परम आनन्द-रस-समुद्र में निमग्न हुए देहाभिमानी होने पर भी भगवान् के मंगलमय मनोहर साकार रूप में एकान्त भाव से मन को एकाग्र करके उन्हीं के लिये सर्व कर्म करने वाले असंख्य लोगों को दृढ़ और सुख पूर्ण नौकाओं पर चढ़ा-चढ़ाकर संसार से पार उतार देते हैं। यहाँ कोई यह कहे कि जैसे निराकारोपासक साकार के दर्शन और उनकी लीला के आन्नद से वंचित रहते हैं, वैसे ही साकार के उपासक ब्रह्मानन्द से वंचित रहते होंगे। उन्हें परमात्मा का तत्व ज्ञान नहीं होता होगा।’ परंतु यह बात नहीं है। निरे निराकारोपासक अपने बल से जिस तत्व ज्ञान को प्राप्त करते हैं, भगवान् के प्रेमी साकारोपासकों को वही तत्वज्ञान भगवत्कृपा से मिल जाता है। भक्तराज ध्रुव जी का इतिहास प्रसिद्ध है। धु्रव व्यक्तोपासक थे, ‘पद्यपलाशलोचन’ नारायण को आँखों से देखना चाहते थे। उनके प्रेम के प्रभाव से परमात्मा श्रीनारायण प्रकट हुए और अपना दिव्य शंख कपोलों से स्पर्श कराकर उन्हें उसी क्षण परम तत्वज्ञ बना दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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