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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
पंचदश अध्याय
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । जो सूर्य में स्थित तेज समस्त जगत् को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है, उसको तू मेरा ही तेज जान। मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रसमय (अमृतमय) चन्द्रमा होकर सारी ओषधियों को (वनस्पतियों को) पुष्ट करता हूँ। मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार प्रकार के भोजन को पचाता हूँ। मैं ही सब प्राणियों के हृदय में (अन्तर्यामी रूप से) स्थित हूँ, मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है, सब वेदों के द्वारा मैं ही जानने योग्य हूँ तथा मैं ही वेदान्त कर्ता और वेदों को जानने वाला भी हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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