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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
एकादश अध्याय
श्रीभगवान् बोले- अर्जुन! प्रसन्न हुए मुझ परमेश्वर के द्वारा आत्म योग से-अपनी योगशक्ति के प्रभाव से तुझको यह मेरा परम तेजोमय, सबका आदि और सीमारहित वह विराट् रूप दिखलाया गया है, जो तेरे अतिरिक्त दूसरे किसी के द्वारा पहले नहीं देखा गया था। कुरुकुल में श्रेष्ठ अर्जुन! मनुष्य लोक में इस प्रकार विश्व रूप वाला मैं न वेद से, न यज्ञों के अध्ययन से, न दानों से, न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे अतिरिक्त दूसरे के द्वारा देखा जा सकता हूँ। मेरे इस प्रकार के इस घोर रूप को देखकर तुझको व्यथित और मूढ़भावापन्न नहीं होना चाहिये। तू भय छोड़कर, प्रेम भरे मन से पुनः मेरे उसी चतुर्भुज रूप को फिर देख। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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