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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
एकादश अध्याय
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः। संजय बोले- राजन्! इस प्रकार कहने के अनन्तर महायोगेश्वर और सब पापों के हरण करने वाले भगवान् ने अर्जुन को परम ऐश्वर्य युक्त दिव्य स्वरूप दिखलाया। अनेक मुख और नेत्रों से युक्त अनेक अद्भुत दर्शनों वाले बहुत-से दिव्य आभूषणों से युक्त और बहुत से- दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुए, दिव्य माला और वस्त्रों को धारण किये हुए, दिव्य गन्ध का सारे शरीर में लेपन किये हुए, सब प्रकार के आश्चर्यों से युक्त सीमा रहित और सब ओर मुख किये हुए विराट् स्वरूप परमदेव परमेश्वर को अर्जुन ने देखा। आकाश में सहस्त्र सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्व रूप भगवान् के प्रकाश के सदृश कदाचित् ही हो। पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त पृथक्-पृथक् सम्पूर्ण जगत् को देवों के देव (श्रीकृष्ण भगवान्-) के शरीर में एक देश में स्थित देखा। तब विस्मय में भरे हुए वे पुलकित-शरीर अर्जुन (उन) प्रकाशमय विश्वरूप श्रीकृष्ण को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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