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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
नवम अध्याय
जगत् की उत्पत्ति का रहस्यसर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर उत्पन्न करता हूँ। प्रकृति के बल से विवश हुए इस समस्त भूत समुदाय की मैं अपनी प्रकृति को अपने वश में करके उनके कर्मानुसार बार-बार रचना करता हूँ। अर्जुन! उन कर्मों में आसक्ति रहित और उदासीन के सदृश स्थित मुझको वे कर्म नहीं बाँधते। अर्जुन! मुझ अध्यक्ष के द्वारा प्रेरित प्रकृति चराचर सहित समस्त जगत् को उत्पन्न करती है और इसी हेतु से यह संसार चक्र घूम रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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