गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 24

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

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काव्य के विषय में चर्चा करने पर देखा जाता है कि काव्य ग्रन्थ दो प्रकार के हैं- साधारण काव्य एवं महाकाव्य। महाकाव्य के में मंगलाचरण श्लोक में तीन पक्षों का वर्णन हुआ है आशीर्वाद, नमस्कार एवं वस्तुनिर्देश। काव्यादर्श में सर्गबन्ध को महाकाव्य कहा गया है।

प्रस्तुत श्लोक में श्रीराधामाधव की रह:केलि का प्रतिपादन हुआ है। अत: यह वस्तुनिर्देशात्मक में मंगलाचरण है, राधामाधव कहने से दोनों का अविच्छिन्ना नित्य सम्बन्ध प्राप्त होता है।

राधाकृष्ण दुहे एक ही स्वरूप।
लीलारस आस्वादिते धरे दुइ रूप॥

श्रीचैतन्यचरितामृत में वर्णित इस पयार के अनुसार श्रीराधाकृष्ण दोनों में अव्यभिचारी सम्बन्ध सूचित होता है। ऋक परिशिष्ट में कहा है राधया माधवो देवो माधवेनैव श्रीराधिका राधा के साथ माधव एवं माधव के साथ श्रीराधिका विराजमान हैं। राधामाधव इस पद में द्वन्द्व समास के द्वारा दोनों का अभिन्न सम्बन्ध प्रकाशित होता है।

इस श्लोक के पूर्वा र्में समुच्चयालंकार तथा उत्तरार्द्ध र्में आशी: अलंकार है। फलत: दोनों की संसृष्टि है। प्रस्तुत श्लोक में वैदर्भी रीति, कैशि की वृत्ति, संभाविता गीति, मध्य लय, प्रसाद गुण, अनुकूल नायक तथा स्वाधीनभर्त्तृ का नायिका है। इस श्लोक के पूर्वार्द्ध र्में अभिलाष लक्षण विप्रलम्भ श्रृंगार है तथा शार्दूल-विक्रीड़ित छन्द है ॥1॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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