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(31)
(राग विलास-ताल त्रिताल)
हूँ महर्शियों में भृगु मैं ही, वाणीमें हूँ मैं ओंकार।
यज्ञों में जप-यज्ञ, स्वरों में हूँ मैं हिमवान् सुठार।।[1]
(32)
(राग विलावल-ताल त्रिताल)
हरि की दिव्य विभूति अमित है, है अनन्त उनका विस्तार।
बता रहे हैं उनमें से कुछ जो प्रधान हैं सब में सार।।
हूँ नारद देवर्शिवर्ग में, वृक्षों में मैं हूँ पीपल।
हूँ गन्धर्व चित्ररथ मैं ही, सिद्धों में मुनि सिद्ध कपिल।।[2]
(33)
(राग भैरव-ताल त्रिताल)
नागोंमें मैं शेशनाग हूँ, जलचरगण में वरुण महान।
पितरों में अर्यमा नियन्ताओंमें मैं हूँ यम बलवान।।
सबका तेज, शक्ति, जीवन में, मैं ही हूँ सबका आधार।
सबमें ओतप्रोत सदा मैं, अखिल विश्व मेरा विस्तार।।[3]
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