हरिगीता अध्याय 10:31-35

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 10 पद 31-35

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गंगा नदों में, शस्त्र-धारी-वर्ग में मैं राम हूँ।
मैं पवन वेगों बीच, मीनों में मकर अभिराम हूँ॥31॥

मैं आदि हूँ, मध्यान्त हूँ, हे पार्थ! सारे सर्ग का।
विद्यागणों में ब्रह्मविद्या, वाद वादी-वर्ग का॥32॥

सारे समासों बीच द्वन्द्व, अकार वर्णों में कहा।
मैं काल अक्षय और अर्जुन, विश्वमुख धाता महा॥33॥

मैं सर्वहर्ता मृत्यु, सबका मूल जो होंगे अभी।
तिय वर्ग में मेधा क्षमा धृति कीर्ति सुधि श्री वाक् भी॥34॥

हूँ साम में मैं बृहत्साम, वसन्त ऋतुओं में कहा।
मंगसिर महीनों बीच, गायत्री सुछन्दों में महा॥35॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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