"हरिगीता अध्याय 13:6-10" के अवतरणों में अंतर

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जीवन, जरा, दुख, रोग. मृत्यु सदोष नित्य विचारना॥8॥
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जीवन, जरा, दुख, रोग, मृत्यु सदोष नित्य विचारना॥8॥
  
 
नहिं लिप्त नारी पुत्र में, सब त्यागना फल-वासना।
 
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मुझमें अनन्य विचार से व्यभिचार विरहित भक्ति हो।
 
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एकान्त का सेवन, न जन समुदाय में आसक्ति हो॥10॥
 
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19:48, 18 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 13 पद 6-10

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सुख-दुःख इच्छा द्वेष धृत्ति संघात एवं चेतना।
संक्षेप में यह क्षेत्र है समुदाय जो इनका बना॥6॥

अभिमान दम्भ अभाव, आर्जव, शौच, हिंसाहीनता।
थिरता, क्षमा, निग्रह तथा आचार्य-सेवा दीनता॥7॥

इन्द्रिय-विषय-वैराग्य एवं मद सदैव निवारना।
जीवन, जरा, दुख, रोग, मृत्यु सदोष नित्य विचारना॥8॥

नहिं लिप्त नारी पुत्र में, सब त्यागना फल-वासना।
नित शुभ अशुभ की प्राप्ति में भी एकसा रहना बना॥9॥

मुझमें अनन्य विचार से व्यभिचार विरहित भक्ति हो।
एकान्त का सेवन, न जन समुदाय में आसक्ति हो॥10॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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