('<div class="bgsurdiv"> <h4 style="text-align:center;">श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
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− | जो दोष- बुद्धि विहीन मानव नित्य श्रद्धायुक्त हैं। | + | जो दोष-बुद्धि विहीन मानव, नित्य श्रद्धायुक्त हैं। |
− | मेरे सुमत अनुसार करके कर्म वे नर मुक्त हैं॥31॥ | + | मेरे सुमत अनुसार, करके कर्म वे नर मुक्त हैं॥31॥ |
− | जो दोष- दर्शी मूढ़मति मत मानते मेरा नहीं। | + | जो दोष-दर्शी मूढ़मति मत, मानते मेरा नहीं। |
− | वे सर्वज्ञान- विमूढ़ नर नित नष्ट जानों सब कहीं॥32॥ | + | वे सर्वज्ञान-विमूढ़ नर, नित नष्ट जानों सब कहीं॥32॥ |
− | वर्ते सदा अपनी प्रकृति अनुसार ज्ञान- निधान भी। | + | वर्ते सदा अपनी प्रकृति अनुसार ज्ञान-निधान भी। |
निग्रह करेगा क्या, प्रकृति अनुसार हैं प्राणी सभी॥33॥ | निग्रह करेगा क्या, प्रकृति अनुसार हैं प्राणी सभी॥33॥ | ||
− | अपने विषय में इन्द्रियों को राग भी है द्वेष भी। | + | अपने विषय में इन्द्रियों को, राग भी है, द्वेष भी। |
ये शत्रु हैं, वश में न इनके चाहिये आना कभी॥34॥ | ये शत्रु हैं, वश में न इनके चाहिये आना कभी॥34॥ | ||
− | ऊँचे सुलभ पर- धर्म से निज विगुण धर्म महान् है। | + | ऊँचे सुलभ पर-धर्म से निज विगुण धर्म महान् है। |
परधर्म भयप्रद, मृत्यु भी निज धर्म में कल्याण है॥35॥ | परधर्म भयप्रद, मृत्यु भी निज धर्म में कल्याण है॥35॥ | ||
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18:53, 1 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'
अध्याय 3 पद 31-35
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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