('<div class="bgsurdiv"> <h4 style="text-align:center;">श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
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− | श्रीभगवान् | + | श्रीभगवान् बोले- |
− | निःशोच्य का कर शोक कहता बात प्रज्ञावाद की। | + | निःशोच्य का कर शोक, कहता बात प्रज्ञावाद की। |
जीते मरे का शोक ज्ञानीजन नहीं करते कभी॥11॥ | जीते मरे का शोक ज्ञानीजन नहीं करते कभी॥11॥ | ||
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त्यों जीव पाता देह और, न धीर मोहित हों कभी॥13॥ | त्यों जीव पाता देह और, न धीर मोहित हों कभी॥13॥ | ||
− | शीतोष्ण या सुख- दुःख- प्रद कौन्तेय! इन्द्रिय- भोग हैं। | + | शीतोष्ण या सुख- दुःख-प्रद, कौन्तेय! इन्द्रिय-भोग हैं। |
आते व जाते हैं सहो सब नाशवत संयोग हैं॥14॥ | आते व जाते हैं सहो सब नाशवत संयोग हैं॥14॥ | ||
− | + | नरश्रेष्ठ! वह नर श्रेष्ठ है, इनसे व्यथा जिसको नहीं। | |
− | वह मोक्ष पाने योग्य है सुख दुख जिसे सम सब कहीं॥15॥ | + | वह मोक्ष पाने योग्य है, सुख दुख जिसे सम सब कहीं॥15॥ |
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17:32, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'
अध्याय 2 पद 11-15
श्रीभगवान् बोले- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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