"हरिगीता अध्याय 2:11-15" के अवतरणों में अंतर

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निःशोच्य का कर शोक कहता बात प्रज्ञावाद की।
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निःशोच्य का कर शोक, कहता बात प्रज्ञावाद की।
 
जीते मरे का शोक ज्ञानीजन नहीं करते कभी॥11॥
 
जीते मरे का शोक ज्ञानीजन नहीं करते कभी॥11॥
  
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त्यों जीव पाता देह और, न धीर मोहित हों कभी॥13॥
 
त्यों जीव पाता देह और, न धीर मोहित हों कभी॥13॥
  
शीतोष्ण या सुख- दुःख- प्रद कौन्तेय! इन्द्रिय- भोग हैं।
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शीतोष्ण या सुख- दुःख-प्रद, कौन्तेय! इन्द्रिय-भोग हैं।
 
आते व जाते हैं सहो सब नाशवत संयोग हैं॥14॥
 
आते व जाते हैं सहो सब नाशवत संयोग हैं॥14॥
  
नर श्रेष्ठ! वह नर श्रेष्ठ है इनसे व्यथा जिसको नहीं।
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नरश्रेष्ठ! वह नर श्रेष्ठ है, इनसे व्यथा जिसको नहीं।
वह मोक्ष पाने योग्य है सुख दुख जिसे सम सब कहीं॥15॥
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वह मोक्ष पाने योग्य है, सुख दुख जिसे सम सब कहीं॥15॥
 
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17:32, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 2 पद 11-15

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श्रीभगवान् बोले-
निःशोच्य का कर शोक, कहता बात प्रज्ञावाद की।
जीते मरे का शोक ज्ञानीजन नहीं करते कभी॥11॥

मैं और तू राजा सभी देखो कभी क्या थे नहीं।
यह भी असम्भव हम सभी अब फिर नहीं होंगे कहीं॥12॥

ज्यों बालपन, यौवन जरा इस देह में आते सभी।
त्यों जीव पाता देह और, न धीर मोहित हों कभी॥13॥

शीतोष्ण या सुख- दुःख-प्रद, कौन्तेय! इन्द्रिय-भोग हैं।
आते व जाते हैं सहो सब नाशवत संयोग हैं॥14॥

नरश्रेष्ठ! वह नर श्रेष्ठ है, इनसे व्यथा जिसको नहीं।
वह मोक्ष पाने योग्य है, सुख दुख जिसे सम सब कहीं॥15॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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