श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 24

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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प्रथम अध्याय

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।39।।

'

तो भी हे जनार्दन! कुलनाशजन्य दोष को भली प्रकार जानने वाले हमलोगों को इस पापसे बचने का उपाय क्यों नहीं खोजना चाहिए।।39।

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।40।।

(यह तो सिद्ध ही है कि) कुल का नाश होने से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं और धर्म का नाश होने से सारे कुल को सब ओर से पाप दबा लेता है।।40।।

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः।।41।।

हे कृष्ण! इस तरह पाप से घिर जाने पर उस कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने पर उस कुल में वर्णसंकरता आ जाती है।।41।।

'संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।'
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।42।।

वह वर्ण संकरता उन कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने का कारण बनती है, क्योंकि उनके पितरलोग पिण्डक्रिया और जलक्रिया नष्ट हो जाने के कारण अपने स्थाने से पतित हो जाते हैं।।42।।

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।43।।

(इस प्रकार) वर्णसंकरता को उत्पन्न करने वाले उपर्युक्त दोषों से उन कुलघातियों के सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं।।43।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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