श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
प्रथम अध्यायकथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्। तो भी हे जनार्दन! कुलनाशजन्य दोष को भली प्रकार जानने वाले हमलोगों को इस पापसे बचने का उपाय क्यों नहीं खोजना चाहिए।।39। कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। (यह तो सिद्ध ही है कि) कुल का नाश होने से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं और धर्म का नाश होने से सारे कुल को सब ओर से पाप दबा लेता है।।40।। अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः। हे कृष्ण! इस तरह पाप से घिर जाने पर उस कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने पर उस कुल में वर्णसंकरता आ जाती है।।41।। 'संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।' वह वर्ण संकरता उन कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने का कारण बनती है, क्योंकि उनके पितरलोग पिण्डक्रिया और जलक्रिया नष्ट हो जाने के कारण अपने स्थाने से पतित हो जाते हैं।।42।। दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकैः। (इस प्रकार) वर्णसंकरता को उत्पन्न करने वाले उपर्युक्त दोषों से उन कुलघातियों के सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं।।43।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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