श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
चतुर्दश अध्यायसर्वम् उत्पद्यमानं क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगाद् उत्पद्यते इति उक्तं तत् कथम् इति तत्प्रदर्शनार्थं ‘परं भूयः’ इत्यादिः अध्याय आरभ्यते। अथवा ईश्वरपरतन्त्रयोः क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः जगत्कारणत्वं न तु साङ्ख्यानाम् एव स्वतन्त्रयोः इति एवम् अर्थम्। प्रकृतिस्थत्वं गुणेषु च संगः संसारकारणम् इति उक्तं कस्मिन् गुणे कथं संगः के वा गुणाः कतं वा ते बध्नन्ति इति गुणेभ्यः च मोक्षणं कथं स्याद् मुक्तस्य च लक्षणं वक्त्वयम् इति एवम् अर्थं च- उत्पन्न होने वाली सभी वस्तुएँ क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से उत्पन्न होती हैं, यह बात कही गयी। सो वह किस प्रकार से (उत्पन्न होती हैं?) यह दिखलाने के लिए ‘परं भूयः’ इत्यादि श्लोकों वाले चतुर्दश अध्याय का आरम्भ किया जाता है। अथवा ईश्वर के अधीन रहकर ही क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ जगत् के कारण हैं, सांख्यवादियों के मतानुसार स्वतंत्रता से नहीं। यह बात दिखलाने के लिए (यह अध्याय आरम्भ किया जाता है)। तथा जो यह कहा कि प्रकृति में स्थित होना और गुणविषयक आसक्ति- यही संसार का कारण है, सो किस गुण में किस प्रकार से आसक्ति होती है? गुण कौन से हैं? वे कैसे बाँधते हैं? गुणों से छुटकारा कैसे होता है? तथा मुक्त का लक्षण क्या है? यह सब बातें बतलाने के लिए भी इस अध्याय का आरम्भ किया जाता है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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