श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
त्रयोदश अध्यायसमस्ताध्यायार्थोपसंहारार्थः अयं श्लोकः- सारे अध्याय के अर्थ का उपसंहार करने के लिए यह श्लोक (कहा जाता है)- क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा । क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः यताव्याख्यातयोः एवं यथाप्रदर्सितप्रकारेण अन्तरम् इतरेतरवैलक्षण्यविशेषं ज्ञानचक्षुषा शास्त्राचार्योपदेशजनितम् आत्म प्रत्ययिकज्ञानं चक्षुः तेन ज्ञानचक्षुषा भूतप्रकृतिमोक्षं च भूतानां प्रकृतिः अविद्यालक्षणा अव्यक्ताख्या तस्या भूतप्रकृतेः मोक्षणम् अभावगमनं च ये विदुः विजानन्ति यान्ति गच्छन्ति ते परं परमार्थतत्वं ब्रह्म न पुनः देहम् आददते इत्यर्थः।।34।। जो पुरुष शास्त्र और आचार्य के उपदेश से उत्पन्न आत्मसाक्षात्कार रूप ज्ञान नेत्रों द्वारा, पहले बतलाये हुए क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के अंतर को उनकी पारस्परिक विलक्षणता को इस पूर्वदर्शित प्रकार से जान लेते हैं, और वैसे ही अव्यक्त नामक अविद्या रूप भूतों की प्रकृति के मोक्ष को, यानी उसका अभाव कर देने को भी जानते हैं, वे परमार्थतत्वस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं, पुनर्जन्म नहीं पाते।।34।। इति श्रीमहाभारते शतसाहस्नयां संहितायां वैयासिक्यां भीष्म- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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