श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 515

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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त्रयोदश अध्याय

समस्ताध्यायार्थोपसंहारार्थः अयं श्लोकः-

सारे अध्याय के अर्थ का उपसंहार करने के लिए यह श्लोक (कहा जाता है)-

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा ।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम् ॥34॥

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः यताव्याख्यातयोः एवं यथाप्रदर्सितप्रकारेण अन्तरम् इतरेतरवैलक्षण्यविशेषं ज्ञानचक्षुषा शास्त्राचार्योपदेशजनितम् आत्म प्रत्ययिकज्ञानं चक्षुः तेन ज्ञानचक्षुषा भूतप्रकृतिमोक्षं च भूतानां प्रकृतिः अविद्यालक्षणा अव्यक्ताख्या तस्या भूतप्रकृतेः मोक्षणम् अभावगमनं च ये विदुः विजानन्ति यान्ति गच्छन्ति ते परं परमार्थतत्वं ब्रह्म न पुनः देहम् आददते इत्यर्थः।।34।।

जो पुरुष शास्त्र और आचार्य के उपदेश से उत्पन्न आत्मसाक्षात्कार रूप ज्ञान नेत्रों द्वारा, पहले बतलाये हुए क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के अंतर को उनकी पारस्परिक विलक्षणता को इस पूर्वदर्शित प्रकार से जान लेते हैं, और वैसे ही अव्यक्त नामक अविद्या रूप भूतों की प्रकृति के मोक्ष को, यानी उसका अभाव कर देने को भी जानते हैं, वे परमार्थतत्वस्वरूप ब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं, पुनर्जन्म नहीं पाते।।34।।

इति श्रीमहाभारते शतसाहस्नयां संहितायां वैयासिक्यां भीष्म-
पर्वणि श्रीमद्भगवगीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोगो नाम त्रयोदशोऽध्यायः।।13।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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