श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 185

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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चतुर्थो अध्याय

स्वाभ्युपगमविरोधः च नित्यं निष्पलं कर्म इति अभ्युपगम्य मोक्षफलाय इति ब्रुवतः।

तस्माद् यथाश्रुत एव अर्थः ‘कर्मणि अकर्म यः’ इत्यादेः, तथा च व्याख्यातः अस्माभिः श्लोकः।।18।।

तद् एतत् कर्मणि अकर्मादिदर्शनं स्तूयते-

इसके सिवा, ‘नित्यकर्मों का फल नहीं है’, ऐसा मानकर फिर उनको मोक्षरूप फल के देने वाला करहने से उन व्याख्याकारों के मत में स्ववचोविरोध भी होता है।

सुतरां ‘कर्मणि अकर्म यः पश्येत्’ इत्यादि श्लोक का अर्थ जैसा (गुर परम्परा से) सुना गया है, वही ठीक है और हमने भी उसी के अनुसार इस श्लोक की व्याख्या की है।।18।।

उपर्युक्त कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्मदर्शन की स्तुति करते हैं-

यस्य सर्वे समारम्भा: कामसंकल्पवर्जिता: ।
ज्ञानग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा: ॥19॥

यस्य यतोक्तदर्शिनः सर्वे यावन्तः समारम्भाः कर्माणि समारभ्यन्ते इति समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः कामैः तत्कारणैः च संकल्पैः वर्जिता मुधा एव चेष्टामात्रा अनुष्ठीयन्ते, प्रवृत्तेन चेत् लोकसंग्रहार्थं निवृत्तेन चेत् जीवनमात्रार्थम्,

तं ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं कर्मादौ अकर्मादिदर्शनं ज्ञानं तद् एव अग्निः तेन ज्ञानाग्ना दग्धानि शुभाशुभलक्षणानि कर्माणि यस्य तम् आहुः परमार्थतः पण्डितं बुधा ब्रह्मविदः।।19।।

जिनका प्रारम्भ किया जाता है उनका नाम समारम्भ है, इस व्युत्पत्ति से संपूर्ण कर्मों का नाम समारम्भ है। उपर्युक्त प्रकार से ‘कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म’ देखने वाले जिस पुरुष के समस्त समारम्भ (कर्म) कामना से और कामना के कारण रूप संकल्पों से भी रहित हो जाते हैं अर्थात् जिसके द्वारा बिना ही किसी अपने प्रयोजन के- यदि वह प्रवृत्ति मार्ग वाला है तो लोक संग्रह के लिए और निवृत्ति मार्ग वाला है तो जीवन यात्रा निर्वाह के लिए – केवल चेष्टामात्र ही क्रिया होती है,

तथा कर्म में अकर्म में कर्म दर्शन रूप ज्ञानाग्नि से जिसके पुण्य-पापरूप सम्पूर्ण कर्म दग्ध हो गये हैं, ऐसे ज्ञानाग्निदग्धकर्मा पुरुष को ब्रह्मवेत्ताजन वास्तव में पंडित कहते हैं।।19।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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