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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट102 ( गोपी कहती है- ) ’ सखी ! श्याम के शरीरमे कोई जादू है उनके अंग-प्रत्यंगमे सैकडो कामदेवोंकी छटा होनेसे उनका वर्णन नही किया जा सकता । कोई मस्तकके मुकुटकी छटा देखकर अपने-आपको भूल गयी है और कोई मुखपर बिखरी अलकोंको देखकर अत्यन्त आनन्दमे निमग्न है । कोई एकाग्रचित्तसे ललाटपर लगे चन्दनको देख रही है ( तो ) कोई भृकुटिपर नेत्र स्थिर करके ( उसे ) देखती मुग्ध हो रही है । कोई अपलक नेत्रोंसे सुन्दर नेत्र देख रही है । ’ सूरदासजी कहते है कि मेरे स्वामीकी शोभा देखकर उसका वर्णन कोई कर नही सका है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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