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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही101 प्रातःकाल आते हुए श्याम शोभायमान हो रहे है । सखी ! उनके कानोंमें रत्नजटित कुण्डल है जिनकी किरणोंसे सूर्य-बिम्ब भी लज्जित होता है । यह जुडी हुई मछलियोंकी आकृतिसे अलंकृत किंकिणी कमरमें शोभा दे रही है और बाँसकी वंशीको हाथ में लेकर मुखसे लगाकर ( सुरीली ) ध्वनिसे बजा रहे है । मयूरपिच्छका मुकुट मस्तकपर शोभा दे रहा है । सूरदासजी कहते है कि हरिकी यह रहस्यमय गति सुनो-भक्तोंके वे भजन करते ( उनसे प्रेम करते ) है और अभक्तोंसे दूर हो जाते है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सातवीं राशि तुला-जोड़ी ।
- ↑ बारहवीं राशि मीन-मछली।
- ↑ पृथ्वीमथी-पिता-पृथ्वी का दोहन करने वाले आदिराज पृथुके पिता वेन या वेणु-बाँस ।
- ↑ जलधितात तिहि नाम कंठ- (जल इसलिए नार कहा जाता है कि वह नरस्वरूप श्रीहरि से उत्पन्न हुआ; वे नारायण जिसके कंठ के समान-केकी- कण्ठाभनील कहे जाते हैं, वह)- मयुर ।
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