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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ100 व्रजकी स्त्रियाँ नन्दनन्दनको देख रही है- वे नवीन मेघके समान नीलवर्ण है और उसपर वे शरीरमे चन्दनका लेप किये है । स्वर्णके रंगका पीला पटुका शरीरपर है और वक्षःस्थलपर वनमाला शोभा दे रही है मानो निर्मल आकाशमे श्वेत बादलोंके ऊपर वद्युतका जाल फैला हो । मोतियोंकी माला विशाल बगुलोकी पंक्तिके समान है जो उडते हुए एक होकर शोभा दे रही है । सूरदासजी कहते है- श्यामकी छटा देख युवतियाँ परस्पर ( उसका वर्णन करके ) आनन्दित हो रही है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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