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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
छियालीसवाँ अध्याय
भक्तवत्सल यदुवंश शिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण थोड़े ही दिनों में व्रज में आयेंगे और आप दोनों को - अपने माँ-बाप को आनन्दित करेंगे। जिस समय उन्होंने समस्त यदुवंशियों के द्रोही कंस को रंगभूमि में मार डाला और आपके पास आकर कहा कि ‘मैं व्रज में आऊँगा’ उस कथन को वे सत्य करेंगे। जैसे सिंह बिना किसी परिश्रम के पशुओं को मार डालता है, वैसे ही उन्होंने खेल-खेल में ही दस हजार हाथियों का बल रखने वाले कंस, उसके दोनों अजेय पहलवानों और महान बलशाली गजराज कुवलयापीड को मार डाला। उन्होंने तीन ताल लंबे और अत्यन्त दृढ़ धनुष को वैसे ही तोड़ डाला, जैसे कोई हाथी किसी छड़ी को तोड़ डाले। हमारे प्यारे श्रीकृष्ण ने एक हाथ से सात दिनों तक गिरिराज को उठाये रखा था। यही सब के देखते-देखते खेल-खेल में उन्होंने प्रलम्ब, धेनुक, अरिष्ट, तृणावर्त और बंक आदि उन बड़े-बड़े दैत्यों को मार डाला, जिन्होंने समस्त देवता और असुरों पर विजय प्राप्त कर ली थी।' श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! नन्दबाबा का हृदय यों ही भगवान श्रीकृष्ण के अनुराग-रंग में रँगा हुआ था। जब इस प्रकार वे उनकी लीलाओं का एक-एक करके स्मरण करने लगे, तब तो उनमें प्रेम की बाढ़ ही आ गयी, वे विह्वल हो गये और मिलने की अत्यन्त उत्कण्ठा होने के कारण उनका गला रूँध गया। वे चुप हो गये। यशोदा रानी भी वहीं बैठकर नन्दबाबा की बातें सुन रही थीं, श्रीकृष्ण की एक-एक लीला सुनकर उनके नेत्रों से आँसू बहने जाते थे और पुत्रस्नेह की बाढ़ से उनके स्तनों से दूध की धारा बहती जा रही थी। उद्धव जी नन्दबाबा और यशोदा रानी के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति कैसा अगाध अनुराग है - यह देखकर आनन्दमग्न हो गये और उनसे कहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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