प्रेम सुधा सागर पृ. 317

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
छियालीसवाँ अध्याय

Prev.png

उद्धव जी ने कहा - हे मानद! इसमें सन्देह नहीं कि आप दोनों समस्त शरीरधारियों में अत्यन्त भाग्यवान हैं, सराहना करने योग्य हैं। क्योंकि जो सारे चराचर जगत के बनाने वाले और उसे ज्ञान देने वाले नारायण हैं, उनके प्रति आपके हृदय में ऐसा वात्सल्य स्नेह - पुत्रभाव है।

बलराम और श्रीकृष्ण पुराणपुरुष हैं; वे सारे संसार के उपादान कारण और निमित्त कारण भी हैं। भगवान श्रीकृष्ण पुरुष हैं तो बलराम जी प्रधान (प्रकृति)। ये ही दोनों समस्त शरीर में प्रविष्ट होकर उन्हें जीवनदान देते हैं और उनमें उनसे अत्यन्त विलक्षण जो ज्ञानस्वरूप जीव है, उसका नियमन करते हैं। जो जीव मृत्यु के समय अपने शुद्ध मन को एक क्षण के लिये भी उनमें लगा देता है, वह समस्त कर्म-वासनाओं को धो बहाता है और शीघ्र ही सूर्य के समान तेजस्वी तथा ब्रह्ममय होकर परमगति को प्राप्त होता है।

वे भगवान ही, जो सबके आत्मा और परम कारण हैं, भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करने और पृथ्वी का भार उतारने के लिये मनुष्य का-सा शरीर ग्रहण करके प्रकट हुए हैं। उनके प्रति आप दोनों का ऐसा सुदृढ़ वात्सल्य भाव है; फिर महात्माओं! आप दोनों के लिये अब कौन-सा शुभ कर्म करना शेष रह जाता है।

भक्तवत्सल यदुवंश शिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण थोड़े ही दिनों में व्रज में आयेंगे और आप दोनों को - अपने माँ-बाप को आनन्दित करेंगे। जिस समय उन्होंने समस्त यदुवंशियों के द्रोही कंस को रंगभूमि में मार डाला और आपके पास आकर कहा कि ‘मैं व्रज में आऊँगा’ उस कथन को वे सत्य करेंगे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः