प्रेम सुधा सागर पृ. 122

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
पंचदश अध्याय

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कभी चकोर, क्रोंच (कराँकुल), चकवा, भरदूल और मोर आदि पक्षियों की-सी बोली बोलते तो कभी बाघ, सिंह आदि की गर्जना से डरे हुए जीवों के समान स्वयं भी भयभीत की-सी लीला करते। जब बलराम जी खेलते-खेलते थककर किसी ग्वालबाल की गोद के तकिये पर सर रखकर लेट जाते, तब श्रीकृष्ण उसके पैर दबाने लगते, पंखा झलने लगते और इस प्रकार अपने बड़े भाई की थकावट दूर करते। जब ग्वालबाल नाचने-लगते अथवा ताल ठोंक-ठोंककर एक-दूसरे से कुश्ती लड़ने लगते, तब श्याम और राम दोनों दोनों भाई हाथ में हाथ डालकर खड़े हो जाते और हँस-हँसकर ‘वाह-वाह’ करते।

कभी-कभी स्वयं श्रीकृष्ण भी ग्वालबालों के साथ कुश्ती लड़ते-लड़ते थक जाते तथा किसी सुन्दर वृक्ष के नीचे कोमल पल्लवों की सेज पर किसी ग्वालबाल की गोद में सिर रखकर लेट जाते। परीक्षित! उस समय कोई-कोई पुण्य के मूर्तिमान स्वरूप ग्वालबाल महात्मा श्रीकृष्ण के चरण दबाने लगते और दूसरे निष्पाप बालक उन्हें बड़े-बड़े पत्तों या अँगोछियों से पंखा झलने लगते। किसी-किसी के हृदय में प्रेम की धारा उमड़ आती तो वह धीरे-धीरे उदय शिरोमणि परम मनस्वी श्रीकृष्ण की लीलाओं के अनुरूप उनके मन को प्रिय लगने वाले मनोहर गीत गाने लगता।

भगवान ने इस प्रकार अपनी योगमाया से अपने ऐश्वर्यमय स्वरूप को छिपा रखा था। वे ऐसी लीलाएँ करते, जो ठीक-ठाक गोपबालकों की-सी ही मालूम पड़तीं। स्वयं भगवती लक्ष्मी जिनके चरण कमलों की सेवा संलग्न रहती हैं, वे ही भगवान इन ग्रामीण बालकों के साथ बड़े प्रेम से ग्रामीण खेल खेला करते थे। परीक्षित! ऐसा होने पर भी कभी-कभी उनकी ऐश्वर्यमयी लीलाएँ भी प्रकट हो जाया करतीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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