प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 121

प्रेम सत्संग सुधा माला

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प्रतिदिन तीन-चार घंटे लीला-चिन्तन में बिताना कौन बड़ी बात है और तारीफ यह है कि कहीं किसी चीज में मन डूबा कि श्रीकृष्ण की कृपा लीला का प्रकाश करके मन को खींच लेगी। श्रीकृष्ण की धारणा नहीं होती, न सही; वैजयन्तीमाला की धारणा, उनके किसी अंग की धारणा, सीढ़ियों की धारणा, नन्द बाबा की पगड़ी की धारणा भी नहीं होगी? होगी, अवश्य होगी। खूब शान्ति से, अखण्ड उत्साह लेकर उनकी कृपा से किसी व्रज-भाव-भावित वस्तु को सोचते चले जाइये, फिर तो श्रीकृष्ण खिंचे हुए, बँधे हुए उसी के साथ प्रकट होंगे ही।

85- जैसे-जैसे वृत्ति की मलिनता दूर होगी, वैसे-वैसे जो राधा भाव, श्रीकृष्ण भाव, श्रीराधाजी का रूप, श्रीकृष्ण का रूप है, उस पर नया-नया रंग चढ़ता जायगा और यह रंग चढ़ना कभी समाप्त ही नहीं होता- चढ़ता ही चला जाता है; क्योंकि वह रूप अनन्त है।

अभी मान लें आप ध्यान कर रहे हैं- मीठे झीने सुर में श्रीकृष्ण बाँसुरी में सुर भर रहे हैं, गायें पूँछ उठा-उठाकर गोशाला में इधर-उधर दौड़ रही हैं, नन्द बाबा के हजारों दास गायों की खड़ी हुई कतार के पास बैठकर दूध दुह रहे हैं, श्रीकृष्ण की दृष्टि दूर पर खड़ी हुई श्रीराधारानी पर लग रही है। X X बस, इतना-सा ही ध्यान प्रतिक्षण नये-नये रंग में, नये-नये भाव में रँगता चला जायगा। इसका स्वरुप कुछ दिनों के बाद ऐसा हो जायगा, उस ध्यान में और पहले के ध्यान में इतना गहरा अन्तर हो जायगा कि आप चकित रह जायँगे। ऐसे ही किसी भी लीला का रंग, भाव सब बदल जायगा। एक बार पूरी चेष्टा करके मन को डूबने का अभ्यासी बनाइये फिर देखेंगे- नया-नया रस मिलेगा।

86- रासलीला की फलश्रुति है कि ‘इसे श्रद्धापूर्वक सुनने वाला परा भक्ति प्राप्त करता है।’ पर ‘अनुश्रृणुयात्’ अर्थात् निरन्तर श्रवण करना चाहिये तथा ‘श्रद्धान्वितः’ अर्थात्इसे हीएकमात्र साधन बनाकर, इस पर दृढ़ विश्वास करके सुने। यदि लीला-श्रवण का ही आप व्रत ले लें तो केवल एक यही उपाय कृपा को प्रकाशित कर देगा; परंतु यह भी होगा पूरी लगन से, पूरी तत्परता से। एक बात सदा के लिये सभी को ध्यान में रखनी चाहिये कि भगवत्कृपा का प्रकाश होकर अधिकारानुसार प्रेम प्राप्त कर लेना चेष्टा की सफलता पर बिलकुल निर्भर नहीं है। यह निर्भर है भाव पर अर्थात् इसने कितनी सत्यता से साधन को पकड़े रहने की चेष्टा की है। बेईमानी की है कि नहीं- इसी पर फैसला होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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