गोपाल सहस्रनाम स्तोत्र पृ. 2

श्रीगोपाल सहस्रनाम स्तोत्रम्

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श्रीगोपालपूजनम्

आचार्य भूमि में अक्षत छोड़वाकर आगे दिए हुए मन्त्र का उच्चारण करते हुए उसपर कर्ता से दीपक प्रज्वलित करावें-

भो दीप! देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत् ।
यावत्कर्मसमाप्ति: स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव ।।

आचार्य निम्न श्लोक का उच्चारण करके कर्ता से दीपक की प्रार्थना करावें-

शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसम्पदाम् ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।

स्वास्तिवाचनम्

ॐ भद्रं कर्णेभि: श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरड़ै्गस्तुष्टुवार्ठ॰ सस्तनूभिवर्यशेमहि देवहितं यदायुः ।।1।।

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्र नश्चक्र जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥2।।

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।
विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥3।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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