गीता रहस्य -तिलक पृ. 168

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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आठवां प्रकरण

सांख्यशास्त्र में सिर्फ यही कहा है कि, सूक्ष्म तन्मात्रओं से ‘स्थूल पंचमहाभूत’ अथवा ‘विशेष’ गुण-परिणाम के कारण, उत्पन्न हुए हैं। परन्तु वेदान्तशास्त्र के ग्रंथों में इस विषय का अधिक विवेचन किया गया है इसलिये प्रसंगानुसार उसका भी संक्षिप्‍त वर्णन - इस सूचना के साथ कि यह वेदान्तशास्त्र का मत है, सांख्यों का नहीं- कर देना आवश्यक जान पड़ता है। ‘स्थूल पृथ्वी, पानी, तेज, वायु और आकाश’ को पंचमहाभूत अथवा विशेष कहते हैं। इनका उत्पत्ति-क्रम तैतिरीयोपनिषद में इस प्रकार हैः-‘‘आत्मनःआकाशःसंभूतः। आकाशाद्वायुः। वयोरग्नि:। अग्रेरापः। अद्भ्य: पृथिवी। पृथिव्या ओषधयः। इ.’’[1]-अर्थात पहले परमात्मा से जड़ मूलप्रकृति से नहीं, जैसा कि सांख्यवादियों का कथन है आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से पानी, और फिर पानी से पृथ्वी उत्‍पन्‍न हुई है। तैतिरीयोपनिषद में यह नहीं बतलाया गया कि इस क्रम का कारण क्या है। परन्तु प्रतीत होता है कि, उत्तर-वेदान्तग्रंथों में पंचमहाभूतों के उत्पत्ति क्रम के कारणों का विचार, सांख्यशास्त्रोक्त गुण-परिणाम के तत्त्व पर ही, किया गया है।

इन उत्तर वेदान्तियों का यह कथन है कि, ‘गुणागुणेषु वर्तन्ते’ इस न्याय से, पहले एक ही गुण का पदार्थ उत्‍पन्‍न हुआ, उससे दो गुणों के और फिर तीन गुणों के पदार्थ उत्पन्न हुए, एवं इसी प्रकार वृद्धि होती गई। पंचमहाभूतों में से आकाश का प्रधान गुण केवल शब्द ही है, इसलिये पहले आकाश उत्पन्न हुआ। इसके बाद वायु की उत्पत्ति हुई; क्योंकि, उसमें शब्द और स्पर्श दो गुण हैं। जब वायु जोर से चलती है तब उसकी आवाज सुन पड़ती है और हमारी स्पर्शेन्द्रिय को भी उसका ज्ञान होता है। वायु के बाद अग्नि की उत्पत्ति होती है; क्योंकि शब्द और स्पर्श के अतिरिक्त उसमें तीसरा गुण, रूप्, भी है। इन तीनों गुणो के साथ ही साथ पानी में चौथा गुण रुचि या रस, होता है इसलिये उसका प्रादुर्भाव अग्नि के बाद ही होना चाहिये; और अंत में, इन चारों गुणों की अपेक्षा पृथ्वी में ‘गंध’ गुण विशेष होने से यह सिद्ध किया गया है कि, पानी के बाद ही पृथ्वी उत्पन्न हुई है।

यास्काचार्य का यही सिद्धान्त है[2]। तैतिरीयोपनिषद में आगे चल कर वर्णन किया गया है कि, उक्त क्रम से स्थूल पंचमहाभूतों की उत्पत्ति हो चुकने पर -‘‘पृथिव्या ओषधयः। ओष्धभ्यिोअन्नम। अन्नात्पुरुषः।’’ - पृथ्वी से वनस्पति, वनस्पति से अन्‍न, और अन्न से पुरुष उत्पन्न हुआ [3]। यह सृष्टि पंचमहाभूतों के मिश्रण से बनती है इसलिये इस मिश्रण-क्रिया को वेदान्त-ग्रन्थों में ‘पंजीकरण’ कहते हैं। पंजीकरण का अर्थ ‘‘पंचमहाभूतों में से प्रत्येक का न्यूनाधिक भाग ले कर सब के मिश्रण से किसी नये पदार्थ का बनना’’ है। यह पंजीकरण, स्वभावतः अनेक प्रकार का हो सकता है। श्री समर्थ रामदास स्वामी ने अपने ‘दासबोध’ में जो वर्णन किया है वह भी इसी बात को सिद्ध करता है। देखियेः-‘‘काला और सफेद मिलाने से नीला बनता है और काला और पीला मिलाने से हरा बनता है [4]। पृथ्वी में अनंत कोटि बीजों की जातियां होती हैं; पृथ्वी और पानी का मेल होने पर उन बीजों से अंकुर निकलते हैं। अनेक प्रकार की बेलें होती हैं; पत्र-पुष्प होते हैं, और अनेक प्रकार के स्वादिष्ट फल होते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तै.उ.2.1
  2. निरूक्त 14.4
  3. तै. 2.1
  4. दा.9.6.40

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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