हमने सुणीछै हरि अधम उधारण -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

Prev.png
राग पीलू


हमने सुणीछै हरि अधम उधारण ।
अधम उधारण सब जग तारण, हमने सुणीछै० ।।टेक।।
गज की अरजि गरजि उठि ध्यायो, संकट पड्यौ तब कष्ट। निवारण ।
द्रोपति सुता को चीर बधायो, दूसासन को मान मद मारण ।
प्रहलाद की प्रतंग्या राखी, हरणाकस नख उद्र बिदारण ।
रिख पतनी पर कि‍रपा कीन्हीं, विप्र सदमाँ की बिपति विडारण ।
मीराँ के प्रभु मो बंदी परि, एती अबेरि भई कि‍ण कारण ।।135।।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुणीछै = सुना है। उधारण = उद्धार करने वाले हैं। तारण = तारने वाले। अरजि = अर्जी वा प्रार्थना पर। गरीज = ललकार कर। ध्यायो = दौड़ पड़े। निवारण = दूर कर देने वाले। द्रोपतिसुता = द्रुपदसुता, द्रौपदी। बधायो = बढ़ा दिया। दमसासन... मारण = दुःशासन का अभिमान चूर्ण कर देने वाले। प्रतग्या = प्रतिज्ञा। हरणाकस = हिरण्यकश्यप। नख... विदारण = नखों द्वारा उदर फाड़ देने वाले। रिख पतनी = ऋषि पत्नी, अहिल्या। सदामाँ = भक्त सुदामा (देखो - पद 188)। विडारण = नष्ट वा दूर कर देने वाले परि = पर, संबंध वा बारे में। अवेरि = देर। किण कारण = किन कारणों से।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः