श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य पृ. 319

श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य

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अष्टम अध्याय

तस्य एव परस्य ब्राह्मणः प्रतिदेहं प्रत्यगात्मभावः स्वभावः। स्वभावः अध्यात्मम् उच्यते।

आत्मानं देहम् अधिकृत्य प्रत्यगात्मतया प्रवृत्तं परमार्थब्रह्मावसानं वस्तु स्वभावः अध्यात्मम् उच्यते अध्यात्मशब्देन अभिधीयते।

भूतभावोद्भवकरो भूतानां भावो भूतभावः तस्य उद्भवो भूतभावोद्भवः तं करोति इति भूतभावोद्भवकरो भूतवस्तूत्पत्तिकरः इत्यर्थः विसर्गो विसर्जनं देवतोद्देशेन चरुपुरोडाशादेः द्रव्यस्य परित्यागः स एष विसर्गलक्षणो यज्ञः, कर्मसञ्ज्ञितः कर्मशब्दित इति एतत्। एतस्माद् हि बीजभूताद् वृष्ट्यादिक्रमेण स्थावरजडंगमानि भूतानि उद्भवन्ति।।3।।

उसी परब्रह्म का जो प्रत्येक शरीर में अन्तरात्मभाव है उसका नाम स्वभाव है, वह स्वभाव ही ‘अध्यात्म’ कहलाता है।

अभिप्राय यह कि आत्मा यानी शरीर को आश्रय बनाकर जो अन्तरात्मभाव से उसमें रहने वाला है और परिणाम में जो परमार्थ ब्रह्म ही है वही तत्व स्वभाव है, उसे ही अध्यात्म कहते हैं अर्थात् वही अध्यात्म नाम से कहा जाता है।

‘भूतभाव-उद्भव-कर’ अर्थात् (उत्पत्ति) ‘भूतभावोद्भव’ है, उसको करने वाला ‘भूतभावोद्भवकर’ यानी भूतवस्तु को उत्पन्न करने वाला, ऐसा जो विसर्ग अर्थात् देवों के उद्देश्य से चरु, पुरोडाश आदि (हवन करने योग्य) द्रव्यों का त्याग करना है, वह त्यागरूप यज्ञ, कर्म नाम से कहा जाता है, इस बीजरूप यज्ञ से ही वृष्टि आदि के क्रम से स्थावर- जंगम समस्त भूतप्राणी उत्पन्न होते हैं।।3।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीमद्भगवद्गीता शांकर भाष्य
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. प्रथम अध्याय 16
2. द्वितीय अध्याय 26
3. तृतीय अध्याय 114
4. चतुर्थ अध्याय 162
5. पंचम अध्याय 216
6. षष्ठम अध्याय 254
7. सप्तम अध्याय 297
8. अष्टम अध्याय 318
9. नवम अध्याय 339
10. दशम अध्याय 364
11. एकादश अध्याय 387
12. द्वादश अध्याय 420
13. त्रयोदश अध्याय 437
14. चतुर्दश अध्याय 516
15. पंचदश अध्याय 536
16. षोडश अध्याय 557
17. सप्तदश अध्याय 574
18. अष्टादश अध्याय 591
अंतिम पृष्ठ 699

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